अधिकार - राजवाला पुँढीर
आज अपना हमें अधिकार चाहिए
आज सपना हमें साकार चाहिए।
बीतीं सदियांँ हैं तबसे मान ना मिला
सूनी रतियाँ हैं कबसे भान ना मिला
आज अँगना हमें उजियार चाहिए।
जबसे फेरे पड़े हैं सजाया है घर
पूरे तन मन से हमने निभाया फर्ज
आज सजना हमें अधिकार चाहिए।
कभी परिवार का हमको माना नहीं
कभी सत्कार तो हमने जाना नहीं
आज अपना हमें परिवार चाहिए।
सदा नारी ही क्यों कुर्बान होती है
दर्द भारी सहन कर महान होती है
आज अपना हमें सत्कार चाहिए।
है पुरुष प्रधान ही कबसे हमरा देश
है पुरुष बलवान ही दिलको देता ठेस
प्रेम रसना हमें भरमार चाहिए।
अपना अधिकार हमने तो खोया सदा
अपना हर फर्ज हमने निभाया सदा
आज हंसता हमें संसार चाहिए।
कभी हक नहीं मिला जिसकी हकदार है
कभी पुष्प नहीं खिला जो खुशबू दार है
आज सबका हमें अति प्यार चाहिए।
जन्म से ही बेटी तो लगती है बोझ
हरवक्त मन में भरती रहती है जोश
ताज अपना हमें हथियार चाहिए।
आज देश केलिए भी लड़ रहीं बेटियां
शत्रुओं पे भी भारी पड़ रहीं बेटियां
आज डरना नहीं जयकार चहिए।
मांग है दिल से हमको भी स्वीकारिए
लाडली कहकर हमको भी पुचकारिए
आज अपना हमें भी प्यार चाहिए।
नींद आती नहीं है जब हम सोचते
रोज अपना गुनाह खुद से ही पूंछते
साफ पुंढीर को अब जवाब चाहिए।
श्रीमती कवयित्री
राजवाला पुँढीर
Utter Pradesh

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