आठो प्रहर सूर्यमहिमा - मालती गेहलोद
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"सूर्य" अग्नि स्वरूप तुम, क्या केवल षष्ठी पूजें जाते हो ।
नहीं, सत्य सनातन संस्कृति में, तुम नित् पूजें जाते हो ।।
"उषाकाल" में तुम ,पृथ्वी के उत्तरी- पूर्वी छोर पर रहते हो ।
जब ध्यान करुं मैं तुम्हारा, तुम
आध्यात्मिक चिंतन करवाते हो।।
" पूर्वाह्न काल "में तुम ,पृथ्वी के पूर्वी छोर पर रहते हो ।
जब ध्यान करुं मैं तुम्हारा,तुम आरोग्यता प्रदान करते हो ।।
"मध्यांह काल" मे तुम, पृथ्वी के दक्षिणी-पूर्वी छोर पर रहते हो।
जब ध्यान करुं मैं तुम्हारा, तुम भोजन का अमृतपान करवाते हो।।
"अपराह्न काल" में तुम,पृथ्वी के दक्षिणी छोर पर रहते हो।
जब ध्यान करुं मैं तुम्हारा,तुम
ऊर्जावान मुझे बनाते हो ।।
"सांयकाल "में तुम , पृथ्वी के दक्षिणी-पश्चिमी छोर पर रहते हो ।।
जब ध्यान करुं मैं तुम्हारा,तुम अध्ययन में मन लगवाते हो।।
"प्रदोष काल" में तुम,पृथ्वी के
पश्चिमी छोर पर रहते हो ।
जब ध्यान करुं मैं तुम्हारा, तुम देव आराधना में मन लगवाते हो।।
"निशीथ काल" में तुम, पृथ्वी के
उत्तरी-पश्चिमी छोर पर रहते हो।
जब ध्यान करुं मैं तुम्हारा, तुम सुख -शांति की अनुभूति करवाते हो।।
"त्रियामा काल" में तुम, पृथ्वी के उत्तरी छोर पर रहते हो।
जब ध्यान करुं मैं तुम्हारा,तुम विश्रांति की अनुभूति कराते हो।।
"सूर्य "ब्रह्मांड के ऊर्जा पुंज तुम,पृथ्वी पर जीवन सम्भव बनाते हो।
आठो प्रहर ध्यान करुं मैं तुम्हारा, तुम मेरी यश, कीर्ति चहूं ओर फैलाते हो।।








लेखक- श्रीमती मालती गेहलोद
मंदसौर ,(म.प्र.)

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