नदी - डॉ ० अशोक
नदी बहती है, धीरे-धीरे,
हर मोड़ पर ठहरकर सोचती है।
पत्थर छूती है, फिसलती है,
फिर कदम कदम आगे बढ़ती है।
छोटे कदम, सावधानी से,
हर लहर में धैर्य की गूँज है।
सारा सच साप्ताहिक अखबार पढ़ते हुए,
हर शब्द की मिठास महसूस करती है,
हर खबर का प्रकाश अपने भीतर समेटती है।
धीरे-धीरे, कदम कदम मिलते हैं,
छोटे प्रयास बनाते हैं विशाल धारा।
लहरें गुनगुनाती हैं,
हर फिसलन, हर मोड़,
हमें यह सिखाती है कि
धीरे-धीरे बढ़ना भी ताकत है।
कागज की नाव की तरह बहती है,
सपनों को अपनी दिशा देती है।
सूरज की रौशनी में चमकती है,
हवा के झोंके में नर्म मुस्कान देती है।
कदम रुकते नहीं,
पर गति सौम्य और सलीकेदार है।
हर मोड़ पर सीख,
हर मोड़ पर आशा।
सारा सच साप्ताहिक अखबार की तरह
धीरे-धीरे पाठक के दिल तक पहुँचता है।
पत्थर और फूल, हल्की हवा
हमारी राह दिखाते हैं।
भीतर की शक्ति जागती है।
छोटे कदम, बड़ी मंज़िल तक पहुँचते हैं।
हर लहर संगीत है,
हर सांस में उम्मीद है।
हर प्रयास असर करता है।
नदी हमें याद दिलाती है—
छोटे कदम भी बड़े परिवर्तन लाते हैं।
डॉ ० अशोक,
पटना, बिहार
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