हादसे - रमा त्यागी “एकाकी”
क्यों हो रहे हैं हादसे इतने
कहाँ गलती है हमारी
कहाँ चूके हम !
अहंकार के मद में
ईश्वर को भूले हम !
प्रकृति का कहर है
या
मानव की तृष्णा का ज़हर!
विज्ञान से भी ऊपर
एक ज्ञान है ईश्वर का !
एक पल में टूट गया
जो मद था विज्ञान का !
सृष्टि का रचयिता है वह
वही पालनहार
वही है संहारक
और वही है जीवन का आधार !
अपनी जड़ों से टूटे हम
प्रकृति को रौंद कर
हादसों को निमंत्रण दिया !
प्रकृति ने बदला लिया !
कहीं बाढ़ तो कहीं सूखा पड़ा!
वृक्षों को काटने का ऋण
चुकाना पड़ा!!
धर्म और सत्य की दिशा को भूले हम
दंभ की राह चलकर
सृष्टि निर्माता को भूले हम !
हादसों की घटनाएँ बढ़ती जा रही हैं!
हर चेहरे पर भय की लकीरें बढ़ती जा रही हैं !
लापरवाही कह दे या नियति,
है तो यह भी कर्म की गति !
कभी कोरोना तो कभी दुर्घटना
दिख रही है जीवन की क्षण भंगुरता!
कलयुग तो है मशीनों का युग ,
पलक झपकते ही सब कुछ पा लिया,
पलक झपकते ही जीवन खो दिया !
मानव बैठा है बारूद के ढेर पर
सोचता है ख़त्म कर देगा सबको
लेकिन स्वयं बच पाएगा क्या ?
बच भी गया तो इस युद्ध के बाद
वह क्या पाएगा !
ठहर जा अब तो
हादसों के शहर में कब तक जी पायेगा !
जब जब धर्म की हानि होगी
महाभारत अवश्य होगा !
जीत चाहे किसी की हो,
हार तो स्वयं की होगी !
मरघट जैसी भूमि पाकर
कैसा हर्ष मनाएगा !
प्रलय की आहट है यह ,
युग बदल ही जाएगा !
युग बदल ही जाएगा !
रमा त्यागी “एकाकी”
उत्तर प्रदेश
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