मैं तो तेरे अंतस में - राजकुमार 'अर्जुन'
मैं तो तेरे अंतस में, तू किसकी पूजा करता है
मन ही तेरा पुनीत नही तू जाने किससे डरता है
खुद पर कर विश्वास ज़रा ईश्वर का तुझे में बसेरा है
पूजा और इबादत में, फ़िर क्या तेरा क्या मेरा है
जाने मन्दिर, मस्जिद में भी क्यों तू यूँ ही वे विचरता है
मैं तो तेरे अंतस में, तू किसकी पूजा करता है
पूजा अगर आस्था मुझ में, मैं भी तेरी आस ही हूँ
तू मुझ में, मैं तुझ में रहता, मैं ऐसा विश्वास ही हूँ
तेरा मन फ़िर विचलित होकर ईधर उधर क्यों फिरता है
मैं तो तेरे अंतस में, तू किसकी पूजा करता है
दृढ़ निश्चय कर जो अपने मन की इच्छाएं हरते हैं
उनका सहाई ईश्वर है, जो मदद स्वयं की करते हैं
ये सच है कि सोना स्वयं ही तपकर सदा निखरता है
मैं तो तेरे अंतस में, तू किसकी पूजा करता है
उपरोक्त कविता मेरी स्वरचित एवं मौलिक कविता है ।
नाम- राजकुमार 'अर्जुन'
शिक्षा : परा- स्नातक (वाणिज्य)
No comments:
Post a Comment