हादसा - तरुणा पुंडीर ' तरुनिल '
हादसा हुआ ऐसा कि हर आँख हुई गीली,
जिंदा जले तन ; भस्म हुआ विमान, बना राख की ढेरी !
सपनों की उड़ान को तत्पर
इक नई नवेली ,
चली पिया के घर विदेश में निपट अकेली,
मन में मधुर कल्पनाएं हुई उसकी सहेली ,
बाबुल के घर की ' खुशबू' बनी राख की ढेरी!
हादसा हुआ ऐसा कि हर आँख हुई गीली...
आकाश से आया पंख 'आकाश' हुआ विलीन ,
माँ हुई बदहवास , आँख का तारा लिया छीन ,
हँसता खेलता परिवार और अनेक आकांक्षाएं ,
भावी सुनहरे भविष्य की कर रहे कल्पनाएं,
एक हादसे ने सभी दुआएं कर दी धूरि।
हादसा हुआ ऐसा कि हर आँख हुई गीली...
रिक्शा वाले की बेटी हो या हो मुख्यमंत्री,
सभी के हिस्से मौत बाँच चुकी थी जन्मपत्री ,
पढ़ रहे थे युवा डॉक्टरी या स्वयं थे डॉक्टर ,
नसीब में नहीं थी रोटी उन्हें उस दिन की मयस्सर,
आसमान से मौत ने दी कुछ ऐसी दस्तक ,
अस्पताल बना श्मशान , जहाँ थी लाशों की ढेरी !
हादसा हुआ ऐसा कि हर आँख हुई गीली…
तरुणा पुंडीर ' तरुनिल '
परिचय तरुणा पुंडीर तरुनिल
शिक्षाविद एवं लेखिका
दिल्ली
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