धोखे की परछाई - प्रो. स्मिता शंकर
कभी आँखों में सच्चाई का दरिया था,
अब बस झूठ का साया रह गया है।
कभी दिल में मोहब्बत की रोशनी थी,
अब हर कोना धोखे से जल गया है।
झूठ ने सच की नींव हिला दी,
धोखे ने रिश्तों को मिटा दिया।
जो लफ़्ज़ कभी दुआ बनते थे,
अब वही इल्ज़ामों में बदल गया है।
धोखा… वो जो मुस्कान में छिपा था,
धोखा… वो जो वादों में बसा था।
हर बार यक़ीन ने हाथ बढ़ाया,
पर हर बार सच कहीं खो गया था।
अब न किसी की बातों पर भरोसा है,
न किसी चेहरे की चमक पर यक़ीन।
झूठ ने सिखाया —
हर साया अपना नहीं होता, हर अपना साया नहीं देता।
धोखे से टूटा दिल भी अब मुस्कुराना जानता है,
वो दर्द में भी जीना पहचानता है।
क्योंकि जब दुनिया झूठ और धोखे से भरी हो,
तो खामोशी ही सच्चाई की ज़ुबान बन जाती है।
प्रो. स्मिता शंकर
कर्नाटका

बहुत जबर्दस्त 👌🏻🙌🏻
ReplyDeleteMa'am your poem is gift to all of us. It showed a beauty of words and power of imagination) thank you for sharing with us .❤️👌😊🙏
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