Monday, 24 November 2025

जीत - डॉ ० अशोक

जीत - डॉ ० अशोक

उगती किरणें
लय और ताल में ढलकर
जीत रचें सुर

मंद पवन बोले
छन्दों की सीढ़ियों पर
मन थिरक उठे

सारा सच साप्ताहिक
सच की रौशनी देकर
रास्ता दिखाए

नीला आकाश
ताल में अपनी बाँहें
खोलकर बुलाए

लय का झरना
पर्वत से उतरता
सुरों का स्पर्श

ताल की चाप
कदमों को सहलाते
छन्द बने संग

सारा सच साप्ताहिक
हफ्तों की धड़कन में
सच को सँवारे

फूलों की फुहार
लय-ताल की भाषा
जीत का गीत

चाँद की लोरी
छन्दों की परछाईं
नींद में भी गूँजे

लहरों का मन
ताल से ताल मिलाकर
सपनों को थामे

दीपक की लौ
लय के संग नाचे
अंधेरा भागे

क्षितिज पुकारे
छन्दों की पगडंडी से
जीत चले आगे

डॉ ० अशोक, पटना, बिहार।

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