हे मनुष्य - उषा सिंह
गौर से देखो मुझे...
मैं प्रकृति हूं...
वन और उपवन से सजी _धजी हूं...
कितनी सुंदर... कितनी मनमोहक हूं.
नंदन वन से.... उपवन यहां..
स्वर्ग से सुंदर...कश्मीर भी यहां...
हे मानव...
अपने सुख के लिए ..
मुझे नष्ट न कर..
वनों को मेरे यूं ध्वस्त न कर..
अरण्य को मेरे मत उखाड़ो.. उजlड़ों
क्यों..क्योंकि...
सेवा करती हूं .….मै .दिन _रैन..
फिर क्यों ....???
पहाड़ काट दिए...
जंगल उजाड़ दिए...
नदियों में तो केमिकल मिला दिए..
और कितने करोगे ...
मुझ पर ...अत्याचार....
मैं नष्ट हो रही...प्रदूषित हो रही..
वायु में तो अब जहर घुल रहा ...
सांस लेना भी अब .. दुर्भर हो रहा..
जीवन जीना जैसे हो गया है मुश्किल
पर्यावरण को कर लो अब तो..
सुरक्षित
हे मानव...
अब तो ले... थोड़ा.. संज्ञान
प्रकृति से न कर यूं ..खिलवाड़
रूष्ट जो रही प्रकृति हमसे..
वंचित कर रही अपने आशीष से...
समय रहते... हम ले संज्ञान
सुरक्षित रखें... हम अपने...
धरती...,पानी.. और बयार ...
इस धरा को हम रखले संभाल
क्यों....क्योंकि...
ईश्वर का है यह .. वरदान...।
ईश्वर का है यह वरदान ...
उषा सिंह
Delhi

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