Tuesday, 23 December 2025

प्रो. स्मिता शंकर - वंदे मातरम् – वीरों का अटूट संकल्प


 प्रो. स्मिता शंकर - वंदे मातरम् – वीरों का अटूट संकल्प 

सीमा की चौकियों पर तैनात
वे अनाम प्रहरी—
जो रात की गहरी ठंड में भी
अपने कर्तव्य की लौ बुझने नहीं देते।
उनके कदमों की आहट
न सिर्फ धरती, बल्कि
हमारे साहस को भी जगाती है।

उनकी आँखों में कोई भय नहीं,
सिर्फ एक प्रतिज्ञा है—
“देश प्रथम।”
और उसी प्रतिज्ञा की धड़कन में
धीमे-धीमे गूँजता है—
“वंदे मातरम्।”

घने कोहरे, तूफ़ान,
या गोलियों की बरसात—
सैनिक के इरादे को कभी नहीं रोक पाते।
वह जानता है कि उसकी एक चौकसी
लाखों नागरिकों की नींद को सुरक्षित बनाती है।
इसलिए वह हर सुबह
उसी पुरातन आस्था के साथ उठता है—
“वंदे मातरम्।”

उनके पदचिन्हों पर
बलिदान की वह मिट्टी है
जो हर पीढ़ी को यह याद दिलाती है
कि स्वतंत्रता कोई उपहार नहीं—
यह उन वीरों की विरासत है
जिन्होंने अपने जीवन से अधिक
देश की गरिमा को महत्व दिया।

जो सैनिक आज बर्फ़ की चट्टानों पर खड़े हैं,
वे सिर्फ शरीर से नहीं,
आस्था और अनुशासन से भी ऊँचे हैं।
उनकी वर्दी पर लगा हर सितारा
हमारे भविष्य की सुरक्षा का प्रतीक है।

और जब तिरंगा हवा में लहराता है,
उनके सीने की धड़कन
धरती की धड़कन से मिलकर
एक ही स्वर में बोल उठती है—
“वंदे मातरम्… भारत मातरम्।”

आज के युवा, नागरिक, और सम्पूर्ण भारत
जब भी इन वीरों को नमन करता है,
वह सिर्फ धन्यवाद नहीं कहता—
वह अपनी जिम्मेदारी भी स्वीकार करता है
कि देशप्रेम केवल सीमा पर नहीं,
अपनी हर भूमिका में निभाया जाता है।

जय हो उन अमर रक्षकों की,
जिनके साहस पर यह देश खड़ा है।
उनके त्याग, अनुशासन और समर्पण को
हम सदैव हृदय से प्रणाम करते हैं।

प्रो. स्मिता शंकर,बैंगलोर, कर्नाटका

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