डबल इनकम नो चाइल्ड - भगवती सक्सेना गौड़
समुद्र के किनारे ही एक रिसोर्ट में प्रिंसिपल उत्कर्षा को रुकना था। यूँ ही पानी मे पैर डाले किनारे टहल रही थी, तभी उसे महसूस हुआ, एक बुजुर्ग भी थोड़ा आगे टहल रहे हैं। अचानक उनका पैर लड़खड़ाया और वह बालू में गिर पड़े। दो चार लोग ही थे आस पास, उनकी सहायता करने लगे। फिर वह उठकर बैठ गए और उत्कर्षा से बोले, "मैम धन्यवाद, पता नही कैसे मैं गिर पड़ा।"
और उम्र की लकीरों के बावजूद उत्कर्षा ने कॉलेज के साथी अमर को पहचाना और बोली, "इस उम्र में जीवन के अंतिम बहाव के समय तुमसे मुलाकात होगी, कभी सोचा न था। मैने तो अपने जीवन को कर्म में झोंक दिया था, तुमने शादी करी थी या नही।"
"करी थी उत्कर्षा पर वह मेरा साथ जल्दी छोड़ गई, एक बेटी है, शादीशुदा है।"
"अच्छा किया, इस उम्र में मुझे लगता है, शादी होनी ही चाहिए, मेरे जीवन के तराजू के पलड़े कभी सीधी रेखा पर खड़े ही नही रह पाए। हमेशा धन संपत्ति का पलड़ा भारी रहा, संतान होती तो सबकुछ समानांतर चलता।"
"अरे उत्कर्षा, आज के आधुनिक समाज मे जो बदलाव हो रहे उस के बारे में सोचो, आज के कपल डबल इनकम नो चाइल्ड के फंडा को मान रहे, जमकर इन्वेस्टमेंट हो रहा, पर बच्चो की जिम्मेदारी उठाना नही चाहते। मेरी एक बेटी है,उसका यही हाल है, और मैं उनके जीवन मे दखलंदाजी भी नही करना चाहता।"
"बिल्कुल सही कहा, जब समय बीत जाएगा तब पछतायेंगे।"
स्वरचित
भगवती सक्सेना गौड़
Karnataka

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