प्रदूषण - डॉ ० अशोक
धुआँ भरी साँस
नीला अम्बर हुआ धुंधला
दर्द की लहरें
नदियों का रोना
किनारों पर कचरे की
टूटी कहानी
काली होती धरा
पेड़ों की सूखी शाखें
मौन विलाप
पिघलते पर्वत
हवा में बढ़ती चिन्ताएँ
धरती काँपती
थमा सा जीवन
पक्षियों की कम होती
उड़ती धुनें
बचपन की हँसी
जहरीली हवा में गुम
सूनी गलियाँ
उम्मीद की किरण
हरियाली फिर लौटे
मन में संकल्प
साफ़ कल की राह
हम सबके हाथों में है
धरती मुस्काए
डॉ ० अशोक, पटना, बिहार
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