दिवाली त्यौहार - सैनिक कवि गणपत लाल उदय
विधा - कविता
आओ हम-सब साथ मनाए दिवाली त्यौहार,
तमस की उमस दूर करे जलाए दीप अपार।
जगमग कर दे घर ऑंगन हो समृद्धि बौछार, सुखमय हो सबका जीवन महके द्वार-द्वार।।
इसदिन ही संपूर्ण हुआ श्री राम का वनवास,
सीता-राम और लखन पधारे अपने निवास।
झिलमिल करते दीप-जलाए पर्व बना खास,
तब से चली आ रही परंपरा कार्तिक-मास।।
इस अमावश की रात्रि को करते प्रकाशवान,
संध्या को लक्ष्मी पूजा का है विशेष विधान।
वन्दना करते श्री गणेश एवम कुबेर भगवान,
तत्पश्चात प्रसाद बांटते परिवार व मेहमान।।
भारत का सबसे प्रमुख ये आनंदमय त्यौहार,
रंगो से रंगोली बनाकर दर सजाते वंदनवार।
स्नेह तेल मे रूई डालकर जलाते दीप कतार,
परदेशी भी घर आते मिलने अपने परिवार।।
रसोईघर मे बनते इस दिन ढ़ेर सारे पकवान,
मीठा-नमकीन खाने से आती मुख मुस्कान।
बाज़ार से खरीदकर लाते वस्त्र और सामान,
चमचमाती लड़ी लगाते सजाते घर-दुकान।।
सुख-दुख बांटो आपस में करना सब विचार,
चरण छूकर बुजुर्गों के लेना आशीष अपार।
लिखा है मैंने सारासच होगी धन की बौछार,
करुणा सब पर सदैव लुटाना होगी न हार।।
सैनिक कवि गणपत लाल उदय, अजमेर

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