Thursday, 2 October 2025

विजयादशमी - जिज्ञासा ढींगरा

 
विजयादशमी - जिज्ञासा ढींगरा

शीर्षक- अच्छाई की जीत

देखो-देखो दशहरा है आया,
रावण ने सर पे अपने है ताज सजाया।

अभिमान था जो रावण को अपने बल का,
पल भर में श्री राम जी ने टूट गिराया।

हा-हा कार रावण ने मचा रखा था,
अपने दशानन से सबको डरा रखा था।

पर भूल हो गई रावण से भारी,
जो समझ न पाया वो श्री राम की गाथा सारी।

समझा श्री राम को एक आम इंसान,
इसलिए हो न पाया रावण का उत्थान।

बुराई को ही रावण ने जीवन में संजोया,
तभी श्री राम जी ने उसको परलोक पहुंचाया।

देता है सीख ये त्योहार,
बुराई की सदा ही होती है हार।

अगर जीवन में सुख-समृद्धि है पाना,
तो हमेशा अच्छाई को ही गले लगाना।

जिज्ञासा ढींगरा
खुर्जा, बुलंदशहर
उत्तर प्रदेश

स्वयं से स्वयं तक का सफ़र - नेहा

 
स्वयं से स्वयं तक का सफ़र - नेहा


क्या मैंने स्वयं को जाना?
क्या मैंने स्वयं को पहचाना?
हाँ… मगर बस इतना ही,
जितना दिखावे की सतह तक था,
अंदर की गहराइयों तक उतरना कहाँ आया मुझे?
कपड़ों के रंग और ब्रांड में
मैंने अपनी पहचान खोजी,
महलों की ऊँची दीवारों में
मैंने अपने सपनों को तोला,
होटलों की चमकती थालियों में
मैंने श्रेष्ठता का स्वाद चखा।
समाज की आँखों में
अपना दर्जा ऊँचा दिखाना ही
जैसे जीवन का सबसे बड़ा मक़सद बन गया—
पर क्या यही है मेरा धर्म?
क्या यही है मेरा कर्म?
नहीं… कभी नहीं!
जीवन ठहरकर पूछता है मुझसे—
क्यों न कुछ पल ऐसे हों
जहाँ मैं अपने भीतर झाँक सकूँ,
जहाँ साँसों की गिनती से परे
मन की गहराइयों को सुन सकूँ।
धर्म वही है जो बाँधे,
नफ़रत की दीवारें नहीं,
कर्म वही है जो जिए,
स्वार्थ की सीमाएँ नहीं।
इंसानियत - यही है मेरा सच्चा धर्म,
सद्भावना - यही है मेरा शाश्वत कर्म।
महलों से ऊँचा है वह हृदय
जो करुणा से भरा हो,
कपड़ों से सुंदर है वह चेहरा
जो सत्य से दमकता हो,
हीरों से बढ़कर है वह थाली
जिसने किसी भूखे का पेट भरा हो।
आज मैं जानती हूँ—
स्वयं को पहचानने का मतलब है
भीतर के अँधेरे को रोशनी में बदलना,
स्वार्थ के आवरण से बाहर निकलकर
मानवता को गले लगाना।
यही है जीवन की सबसे बड़ी जीत—
इंसान होकर इंसान बने रहना।
 
— नेहा
हिंदी शिक्षिका 
नई दिल्ली

रावन - हेमलता ओझा

 
रावन - हेमलता ओझा 


 क्या है रावन
 जो आज भी ऊसको जलाया जाता है
रावन वो है जो त्रिनेत को शीश का दान देकर
भक्ति का अलख जगाया
कौन है रावन
रावन  जिसे खूद शिव जीने अपना गूरू बनाकर  सोने की लंका दे डाली
रावन कौन है
रावन  वो है जो अपने परिवार व खूद के मोक्ष के लिये पूरे कूल का बलि दे डाला
रावन कौन है
 रावन वो है जो माता सीता को बचन दिया लंका घूमाने को 
बेटी ही तो थी मा
ये वो भी जानती थी
देखा तक नही मां ने और रावन ने 
एक दूसरे को
  रावन कौन है
रावन रामायण नमबर वन रीयल हीरो है
रावन पूजनीय नही बंदनीय होना चाहीये
 ,बहन बेटी की इज्जत कैसी की जाती है ऊससे सिखना चाहीये
रावन कौन है
 लेकिन रावन रावन बनता ही क्यो
जब मां को पहले ही अग्नि मे प्रवेश  प्रवेश करवा चूके थे पुरूषोत्तम राम
छाया ही तो थी मां
ये भगवान भी जानले थे
फिर भी अग्नि परिक्षा ले डाली 
भगवान ने
 लेकर परिक्षा भी गर्भ वती मां को
लव और कूश को जंगल मे जन्म देना पडा
 रावन कौन है
सोच बदलो  जमाने के खूदाया
किसी ने ये ना कहा रावन का पूतला ही जला डालो
कौन है रावन 
 ऊससे भयानक रावन घूम रहे हर जगह
कहां कहा गिनाऊ मै
सत्ता की गलियारे से लेकर
घर की गलियों तक  
बेटीयों की मां जीती है चिंता की लकीरों तक
सूरक्षित नही है नारी
अपने ही गांव मूहलले देश तक
कैसे कह दू रावन निंदनीय है
रावन कौन‌है
 है छोटी कलम मेरी छोटा मूंह भी
ना ही बहूत ज्ञान है हेमा के पास
लेकिन गूजारिश करती हुं जमाने के खूदाया
झांको मौका आने पर 
खूद के मन मे छिपे मार सकते हो रावन को
  सबमे है रावन का नेचर 
फिर क्यो जलाते हो ऊस‌प्रकांड शक्ति कोरूसवाकरके चौराहे पर
जलाना  हो तो बूराइ चोरी कपट बेइमान हवश नाम का
पूतला बनाओ
और मारो इंटा पत्थर से
फीर बढे शौक से जला देना दशहरे पर चौराहे पर
फिर कहना दशहरा पर्वहै सत्य की जय का
गलत थे रावन के पथ
तभी आज जलता है चौराहे पर

हेमलता ओझा 
उत्तर प्रदेश 

धर्म अधर्म - प्रो. स्मिता शंकर

धर्म अधर्म  - प्रो. स्मिता शंकर

धर्म अधर्म : जागो, यही है निर्णायक समय

धर्म अधर्म का संघर्ष युगों से चलता आ रहा है। महाभारत से लेकर आज के समाज तक, हर युग में यह सवाल खड़ा होता रहा है—हम किस ओर हैं? धर्म वह है जो सत्य, न्याय, करुणा और सेवा का मार्ग दिखाए, जबकि अधर्म वह है जो स्वार्थ, हिंसा, छल और अन्याय को बढ़ावा दे।

जब धर्म सो जाता है, तो अधर्म का तांडव मचता है। इतिहास गवाह है कि अन्याय, स्वार्थ और हिंसा जब भी बढ़े हैं, तब धर्म ने ही समाज को बचाया है। प्रश्न यह है—क्या हम तमाशबीन रहेंगे या धर्म की मशाल थामेंगे?

धर्म वह शक्ति है जो सत्य, न्याय, करुणा और सेवा का मार्ग दिखाती है। अधर्म वह अंधकार है जो छल, भ्रष्टाचार, नशा और लालच के रूप में समाज को खोखला कर देता है। आज का समय भी इसी कसौटी पर खड़ा है। भ्रष्टाचार, नशा, हिंसा और लालच अधर्म के आधुनिक चेहरे हैं, जो समाज को भीतर से खोखला कर रहे हैं। वहीं ईमानदारी, त्याग, सेवा और संवेदनशीलता धर्म के वास्तविक स्वरूप हैं, जो समाज को सशक्त और जीवंत बनाते हैं।

धर्म अधर्म का यह संघर्ष केवल महाकाव्यों की कहानी नहीं, बल्कि हमारे रोज़मर्रा के जीवन की हकीकत है। हर दिन हमें यह तय करना पड़ता है कि हम किस ओर खड़े हैं—आसान लेकिन विनाशकारी अधर्म की राह पर, या कठिन किंतु उज्ज्वल धर्म के मार्ग पर।

इतिहास उन्हीं को याद रखता है जो धर्म के पक्ष में डटे। समाज बदलने के लिए किसी एक महानायक का इंतज़ार मत कीजिए; हर व्यक्ति का संकल्प ही सबसे बड़ी ताक़त है।

आइए, हम धर्म को कर्म बनाएँ और अधर्म को चुनौती दें। यही भारत का स्वर्णिम भविष्य होगा।यही सच्ची मानवता है, यही राष्ट्रधर्म है, यही समय की सबसे बड़ी जरूरत है।हम धर्म को जीवन का आधार बनाएँ, अधर्म के हर रूप का साहस से सामना करें और देश को नई दिशा दें।

प्रो. स्मिता शंकर
कर्नाटका 

माँ की आराधना - श्रीमती मालती गेहलोद

 
माँ की आराधना - श्रीमती मालती गेहलोद

माँ जगदम्बिके तुम्ही सम्पूर्ण सृष्टि की अधिद्राष्ट्री हो।
माँ शक्ति स्वरूपा सकलशब्दमय आकार तुम्ही  हो।
ब्रह्मांड के दृश्य- अदृश्य जगत तुम्ही में व्याप्त करती हो।
है कमलासना महिषासुरमर्दनी भगवती महालक्ष्मी तुम्ही  हो।
सम्पूर्ण विश्व को अभय वरमुद्रा, सिद्धि देने वाली तुम्ही हो।
त्रिलोक की आधार भूता महागौरी तुम्ही हो।
शुम्भ- निशुम्भ, ध्रुमलोचन  जैसे दानवों का नाश करने वाली  हो।
सर्वेज्ञेश्वर भैरव के अंग में निवास करने वाली पद्मावती तुम्ही हो।
मातङ्गी चण्ड-मुण्ड ,रक्तबीज  का विनाश करने वाली तुम्ही हो।
माँ अणिमा , अर्धनारीश्वरी  सर्वसिद्धि प्रदायनी भवानी हो ।
मस्तक पर अर्धचन्द्र धारण करने वाली शिवशक्तिस्वरूपा हो
माँ भुवनेश्वरी शरणागत  के दुःख हरने वाली  त्रिनेत्रा दुर्गा तुम्ही हो।
माँ  हर युग मे धर्मद्रोही महादैत्यो संहार  करने वाली तुम्ही हो ।
मै अज्ञानी तुम्हारी आराधना  किस प्रकार करू,  माँ तुम्ही सर्वज्ञा हो।
सर्वेश्वरी इस कलयुग  के दानवों का तुम नाश कर सभी प्राणियों की रक्षा कर  सम्पूर्ण सृष्टि को भयमुक्त करो ।
👏🏻श्रीदुर्गार्पणमस्तु👏🏻


लेखक- श्रीमती मालती गेहलोद
              मंदसौर (म .प्र.)

दशहरा - डॉ ० अशोक

दशहरा - डॉ ० अशोक

रावण डूबा,
सत्य की धारा बहती,
अंधकार गया।

अग्नि के तीर,
असत्य का तन जलाए,
सत्य की विजय।

धर्म की मशाल,
अंधियारे में चमकती,
हृदय को रोशन।

सारा सच पढ़ो,
अखबार की बात सच,
ज्ञान की ज्योति।

शंख की गूँज,
सुनो कानों में हर ओर,
धर्म का संदेश।

शमी के पत्ते,
सौभाग्य और मंगल लाए,
सत्य की राह।

दीपों की रौशनी,
अज्ञान का अंधेरा मिटाए,
ज्ञान की ज्योति।

ढोल की थाप,
रामलीला मंच पर सजे,
खुशियों का रंग।

बच्चों की हँसी,
मेले में बिखरी खुशबू,
जीवन में उत्सव।

असत्य नाश हुआ,
सत्य और न्याय की बूँद,
धरती पर छाई।

सारा सच अखबार,
सत्य की खबर फैलाए,
मन में प्रकाश।

माँ दुर्गा वंदना,
शक्ति जागे, भय भागे,
विश्वास अंकुरित।

रावण का अंत,
हर मन में सत्य की ज्योति,
नव चेतना जागे।

दशहरा पर्व,
जीवन में धर्म का पाठ,
अमर संदेश।

सत्य और साहस,
सारा सच अखबार बताए,
हर दिल में दीप।

धैर्य और भक्ति,
सत्य की राह दिखलाती,
मन को शांति।

धरा पर विजय,
असत्य का पतन हुआ,
विश्व में उजास।

रावण का डर गया,
सत्य की शरण में आए,
मन हुआ मुक्त।

दीप जल उठे,
असत्य के अंधेरे में,
सत्य की लहर।

सत्य का संदेश,
सारा सच साप्ताहिक अखबार,
जीवन रोशन।

डॉ ० अशोक, पटना, बिहार

दशहरा - महाकवि अनन्तराम चौबे अनन्त

 
दशहरा - महाकवि अनन्तराम चौबे अनन्त


असत्य पर सत्य की
अधर्म पर धर्म की जीत हुई।
अन्याय पर न्याय की
दशहरा पर्व पर जीत हुई ।

विजयदशमी दशहरा पर्व है
बुराई पर अच्छाई की जीत है।
श्रीराम ने रावण को आज ही
विजयदशमी  को ही मृत्यु हुई।

रावणराज के अत्याचारों से
धरती पर अत्याचार मचा था।
साधु संत और महात्माओं का
जीना मुश्किल  हो गया था ।

राक्षसों के अत्याचारों से
त्राहि त्राहि मची हुई थी ।
धर्म कर्म करना मुश्किल था
अधर्म का ही बोलबाला था ।

राक्षसों का विनाश करने
मैया दुर्गा अवतरित हुई ।
राक्षसों का बध करके
मां दुर्गा रूप में श्रेष्ठ हुई ।

महिषासुर कुम्भ निकुंभ वह 
रक्त वीर सुंड़ मुंड का बध किया ।
ऐसे राक्षसों के अत्याचारों से
धरती माता को मुक्त किया ।

रावण के अत्याचारों से
भगवान विष्णु ने जन्म लिया ।
सारा सच श्रीराम रूप में रावण 
का बध  करने अवतार लिया ।

माता पिता की आज्ञा पालन
कर वनवास की राह बनाई थी।
सारा सच मर्यादा में रहकर भी 
ऐसी श्रीराम ने लीला रचाई थी ।

सीता लक्ष्मण के साथ में ही
मर्यादा में रहकर वन वन भटके।
राक्षसों का अंत किए और साधु
संतों को अत्याचार से मुक्त किये।

राम रावण का युद्ध महाबली 
हनुमान बिना अधूरा ही था ।
बजरंगबली जो कार्य किया है 
वो किसी और के बस में नही था 

समुद्र लांघकर लंका पहुंचे और
माता सीता का पता लगाया था।
अशोक वाटिका तहस नहस कर
रावण की सभा बल को दिखाया था 

राम लक्ष्मण नाग पास में बंधे
हनुमान जी गरूड़ को लाये थे ।
नाग पास से मुक्त कराये और
नाग पास से मुक्ति पाते थे ।

लक्ष्मण को जब शक्ति लगी
सुखेनवैद्य को लंका से ले आए थे ।
उनकी बताई जड़ी बूटी को 
पर्वत के सहित उठा लाए थे ।

ऐसे अनेक अद्भुत कारनामें
बजरंगबली करके दिखलाए थे ।
श्रीराम की सेना के बल साहस
क़दम क़दम पर बढ़ाए थे ।

विजयदशमी दशहरा को ही
रावण राज का अंत हुआ ।
सारा सच सच्चाई की जीत हुई  
और बुराई का ऐसे अंत हुआ ।

महाकवि अनन्तराम चौबे अनन्त
जबलपुर म प्र

धर्म - कंचनमाला ’अमर’(उर्मी)

 
धर्म - कंचनमाला ’अमर’(उर्मी)

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धर्म न बसता मंदिर में ना ही बसता ये मस्जिद में,
बसता है मानवता में ये और मानव के सच्चे मन में।

न पूजा में न रोज़े में,न बसता रीति रिवाजों में,
यह बसता है विश्वासों में और खिलता प्रेम के आंगन में।

जो भेदभाव न करता हो,मानवता का अर्थ समझता हो,
सच्चा अनुयायी धर्मों का जो धर्म का मर्म समझता हो।
 
जो लड़ता धर्म को ढाल बना वो कायर  पागल अक्खड़ है,
उसके कर्मों का लेखा जोखा करनेवाला ईश्वर है।

धर्म जोड़ता मानव को और सच की राह दिखाता है,
सच्चे मन का अंतर्मन ही तो ईश्वर या रब कहलाता है।

स्वरचित व मौलिक 
कंचनमाला ’अमर’(उर्मी)✍️
Delhi 

मर्यादा पुरुषोत्तम राम - रेखा चौरसिया

 

मर्यादा पुरुषोत्तम राम - रेखा चौरसिया

प्रज्ज्वलित कर दीप मंगल गान का आलाप दो,
शंख नाद , वाद्य - यंत्रों से गगन पर थाप दो,
ये अनहद नाद  ,अवसर राम के त्योहार का,
दीपों की है ये श्रृंखला,मन- मीत  संग अवतार का।
परमेश्वरी के आगमन से द्वार वंदन की प्रथा,
करते नमन ,और प्रज्ज्वलित ये दीप कहते हैं कथा।
ये राम - रावण युद्ध और संहार का परिणाम थी,
अच्छे - बुरे संघर्ष में ये जीत थी प्रभु राम की।
लौटे अयोध्या ,संग सीते  देखती नगरी  कहे,
हे मात! इतने दुःख बिनु श्री राम के कैसे सहे?

ये प्रश्न सुन अधीर हो ,लक्ष्मण ने पकड़े थे चरण,
माते को रावण ने किया , अपराध वश ही था हरण,
ज्यों राम ने अब था संभाला भ्रात को बाहु पकड़,
नियति से तुम सर्वज्ञ हो , बंधन नहीं लें तुमको  जकड़।

सीते सरल नेत्रों सजल , होती रहीं थी ज्यों विकल,
अग्नि परीक्षा दें चली ,आई अयोध्या धाम पर,
रघुनाथ का,ये दीप उत्सव 
दीपिका मंगल सजे,
शंख ध्वनि के नाद संग घंटे नगाड़े भी बजे,
वर्ष चौदह काट कर लौटे हैं जो निज धाम को,
दीपों सजाओ हर हृदय में एक प्रभु श्री राम को।

तीन लोकों में दिवाली पर्व एक एहसास है,
मेरे मन - मंदिर में प्रभु श्री राम का  ही वास है।
भक्ति हृदय में  प्रेम वाणी नाथ मेरे राम की,
मेरे हृदय बैठे पिता श्री राम माता जानकी।

रेखा चौरसिया, 
उत्तर प्रदेश