Wednesday, 26 November 2025

कानून/ नियम - महाकवि अनन्तराम चौबे अनन्त


राष्ट्रीय हिन्दी साहित्य मंच हमारी वाणी 

साप्ताहिक प्रतियोगिता हेतु 
विषय... कानून/ नियम - महाकवि अनन्तराम चौबे अनन्त 

नाम.. महाकवि अनन्तराम चौबे अनन्त जबलपुर म प्र 
कविता...कानून /नियम 

कानून/ नियम संसद में बनते
जो बहुमत से पास होते हैं ।
सत्ता पक्ष और विपक्ष के
सांसद अपना पक्ष रखते हैं ।

संसद में कानून पास होता है
राष्ट्रपति के हस्ताक्षर होते हैं ।
ऐसे बने कानून को फिर क्यों 
सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देते हैं ।

संसद में सांसदों के बहुमत से
कानून /नियम जो पास होते हैं ।
कोर्ट के दो चार जज क्या ऐसे 
कानून /नियम को रोक सकते हैं ।

संविधान के संशोधन भी 
संसद में ही पास होते हैं ।
पूरे देश के चुने सांसद ही
कानून /नियम में सहमति देते है। 

कानून, नियम कोर्ट, फैसला,
वकील बीच में इसके रहते है ।
अन्याय जहां जब भी होता है
न्याय पाने को कोर्ट जाते है ।

कोर्ट कचहरी और थाने में
न्याय मांगने सब जाते हैं ।
न्याय अन्याय के चक्कर में
दोनों पक्ष यहां पर जाते हैं।

न्याय अन्याय के फैसले में
कानून से फैसला होता है ।
वकील कोर्ट में जिरह करते है
गवाह और साक्ष्य रखते हैं ।

अपराधी मामले पुलिस देखती
जांच के वाद रिपोर्ट को लिखती ।
चार्ज सीट जब कोर्ट में जाती
सुनवाई केश की तब है होती ।

कानून तो बस अंधा होता है
साक्ष्य और गवाह मांगता है ।
सच को झूठ और झूठ को सच
वकीलों की जिरह से होता है ।

न्याय पाने के चक्कर में कोर्ट में
दस बीस साल गुजर जाते हैं ।
तारीख पर तारीख कोर्ट से मिलती
समय और पैसा बरवाद होते हैं ।

वकीलों की रोजी रोटी चलती है
हर पेशी में फीस जो मिलती है ।
वकीलों का काम जिरह करना है
मानवता वहां तार तार होती है ।

अपराध और दुष्कर्म के मामले में
महिलाओं की इज्जत लुटती है ।
न्याय को पाने कोर्ट जो जाता
उसकी भी इज्जत लुट जाती है ।

न्याय कानून कोर्ट के फैसले
वकीलों के माध्यम से चलते हैं ।
सारा सच न्याय मिले या न मिले
जीवन तो बर्बाद  हो जाते हैं  ।

न्यायालय है न्याय का मंदिर
न्याय पता नहीं कब होता है।
किसको न्याय कब मिलता है
समय का न कुछ पता होता है ।

माध्यम वकील न्याय में होते
जो अपना धंधा करते हैं ।
सारा सच वादी, प्रतिवादी के 
पक्ष में वकील खड़े रहते हैं ।

कौन सच्चा और कौन झूठा है
दोनों पक्ष अपना रखते हैं ।
दोनों जीत का वादा करते
मन मानी फीस जो लेते हैं ।

गारंटी नहीं किसी केश की
हार जीत कब किसकी होगी ।
वकील फीस अपनी लेते हैं
अगली तारीख बढ़ा लेते हैं 

सारा सच फैसले की गारंटी नहीं 
तारीख पर तारीख  ही मिलती है ।
दस बीस साल केश चलते हैं
खर्च की कोई सीमा नहीं होती है ।

नियम कानून पर क्या लिखूं 
बात समझ में कुछ न आए ।
संसद बड़ा या कोर्ट बड़ा है
कैसे ये नियम समझ में आए ।

  महाकवि अनन्तराम चौबे अनन्त
    जबलपुर म प्र

आज के युग की सच्चाई - नेहा

 
  आज के युग की सच्चाई - नेहा

आज के युग की यही है सच्चाई,
तुम कौन हो भाई ?
जब तक स्वार्थ है, तब तक अपनापन,
फिर चेहरे पर नकली भाईचारा और  दिखावटी अपनापन।

तुम अच्छे हो तब तक ही,
जब तक मेरी कमियाँ तुमने छिपाई,
सच कहा तो रुठ गए सब,
झूठ बोलो तो सब मुस्कुराई।

रिश्ते अब नाप-तोल में बँटते हैं,
सच्चाई सुनकर सब तिलमिलाते हैं,
जो आईना दिखाए, वो दुश्मन कहलाए,
जो झूठ सजाए, वही दोस्त कहाए।

मतलब की डोर से बँधे हैं रिश्ते,
सच्चाई का वजन अब कौन उठाए?
आज का जमाना चाहता है चापलूसी,
सच्चे शब्दों से तो सब कतराए।

नेहा 
दिल्ली 

जय हो भारत जय हो - स्वाति 'पूजा'


जय हो भारत जय हो - स्वाति 'पूजा'
***************** 

आजादी के परवानों ने 
जलकर गीत गाया था 
मर मिटें देश के लिए 
हंसकर यही गुनगुनाया था 
जय हो भारत, जय हो 
हर भारतवासी ने गाया था।

देश प्रेम की ख़ातिर 
हुए देश पर कुर्बान 
अपनी भारत माता की 
जिंदा रखी शान 
हर जुबां ने यही गीत गुनगुनाया था 
जय हो भारत, जय हो 
हर भारतवासी ने गाया था।

देश नहीं ये घर हमारा 
दुश्मन को बाहर निकाला था 
नज़र उठा कर देखा जिसने 
उसका हाल बुरा कर डाला था 
रोम-रोम में यही गीत समाया था 
जय हो भारत, जय हो 
हर भारतवासी ने गया था।

स्वाति 'पूजा' ✍️
ग्रेटर नोएडा

सरकार - सचिन परवाना


 कविता : सरकार - सचिन परवाना


सरकार से कानून की दरकार हमको है,
हो बेटियां महफूज ये पुकार हमको है,
बेखौफ कब घूमेगी यहाँ ये पूछती है वो ,
जरुरत ऐसे माहौल की सरकार हमको है,

कोई नियम ना मानता इस दौर में यहाँ,
कोई नियम ना जानता इस दौर में यहाँ 
कुछ तो हो डर कानून का इंसान में यहाँ,
जरुरत ऐसे कानून की सरकार हमको है,

घर से जो निकले बेटियां दिल माँ का घबराये,
जो आने में थोड़ी देर हो तो बाप डर जाए,
माँ बाप भी हो बेफिक्र बेटी की तरफ से,
कुछ आस ऐसे ही विश्वास की सरकार हमको है,

इनको मिले जो आस तो कुछ कर ही जाएँगी,
जाएँगी ये भी चाँद पे, जमी पे तारों को लाएंगी,
फ़िलहाल तो मोहल्ले में चलना हो गया दूभर 
इनका न टूटे हौसला उम्मीद ये सरकार हमको है,

आज़ादी के माहौल में आज़ाद नहीं यें,
प्रतिबन्ध इनपे आज भी बेबाक नहीं यें,
कब तक यूँही आज़ादी को ये अपनी तरसेंगी,
बस आपसे उम्मीद अब सरकार हमको है,

सरकार से कानून की दरकार हमको है,
हो बेटियां महफूज ये पुकार हमको है,
बेखौफ कब घूमेगी यहाँ ये पूछती है वो ,
जरुरत ऐसे माहौल की सरकार हमको है,
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सचिन परवाना

सरकार - डॉ० अशोक

 
सरकार - डॉ० अशोक

सत्ता की सरगम,
वादों का संगम है,
सच अब भी तन्हा।

जनता की आँखें,
हर ओर टटोलतीं,
सारा सच पूछे।

नीति के मोती,
काग़ज़ में चमकते हैं,
मन फिर भी प्यासा।

कुर्सी की बंसी,
वादों की धुन बजाए,
सुनता कौन है।

सपनों की सेज पर,
सत्ता सोई रहती,
जनता जागे है।

जब सब मौन हुए,
एक आवाज़ उभरी —
सारा सच बोले।

हवा में गूँजे,
नीति की गुपचुप बात,
सच खुलता वहीं।

काँटों की हँसी में,
फूलों का डर भी है,
राजमहल महके।

शब्दों के जंगल,
वादों के उपवन हैं,
पथ फिर भी सूना।

हर बार चुनाव,
सपनों की नीलामी,
जनता देखे है।

पर एक अख़बार,
दीपक-सा चमकता —
सारा सच साप्ताहिक।

वो हर हफ्ते ही,
सत्ता के आँचल में,
सच की बात रखे।

डॉ० अशोक, पटना, बिहार

सामाजिक माध्यम - मंजू कुशवाहा "अरुणिमा "

सामाजिक माध्यम - मंजू कुशवाहा "अरुणिमा " 

सारा सच अंतरराष्ट्रीय हिंदी साहित्य प्रतियोगिता 
'हमारी वाणी '
विषय-सामाजिक माध्यम 

ख्वाहिश थी की कलम हाथ हो,और किताबों से यारी l
ख्वाहिश भी दम तोड़ रही थी,छूट रही सखियाँ प्यारी ll

छूट रहा बाबुल का अँगना ..छूट रही हँसी ठिठोली l
यादों की संदूक पुरानी,चला रही हिय पर गोली  l

दौर पुराना संसाधन कम ,फिर भी हँसकर मिलते थे l
पाकर चिट्ठी बहुत दिनों पर,अधर कुसुम बन खिलते थे ll

शैने शैने  वक़्त का पहिया,नई सदी की ओर  बढ़ा l
तकनीकी का हाथ थाम कर,सृजन का पर्वत देख चढ़ा ll

यू ट्यूब,ऑर्कुट  फेसबुक ,#सामाजिक माध्यम कहलाये l
बच्चे बूढ़े और युवाओं ,का दिल देखो य़ह बहलाए ll
 
नई पुरानी सभी किताबें, गूगल पे हैं भरी पड़ी l
मिली हैं सखियाँ वही पुरानी ,बातों की फिर लगी झड़ी l

#सामाजिक माध्यम के बल. पर ,दूर दूर की खबरें पाते l
दिखा हुनर सब इसपर कितना ,आजीविका भी कमाते ll

कभी बना वरदान यही तो ,श्रापित भी  ये कहलाया l
#समाजिक माध्यम ने अपना,वीभत्स रूप दिखलाया l

अश्लीलता  लील रही है,देखो भावी पीढ़ी को l
अंकुश नितांत जरूरी है,घुन लगती इस सीढ़ी को ll


मिलना जुलना सीमित अब तो ,डिजिटल दुनिया कहते हैं l
उपकरणों में खोए  बच्चे ..भाव विहीन अब रहते हैं ll

मंजू कुशवाहा "अरुणिमा"
इंदिरापुरम गाज़ियाबाद 

स्वरचित एवं मौलिक 

मौलिकता प्रमाणपत्र-

मैं मंजू कुशवाहा "अरुणिमा " यह ज्ञापित करती हूँ कि उपरोक्त रचना पूर्णतः मेरे द्वारा लिखी गयी है l यह किसी भी अन्य स्रोत से नहीं ली गयी l यह पूर्णतः स्व रचित , मौलिक एवं अप्रकाशित  रचना  है l इसका सर्वाधिकार पूर्णतः मेरे पास सुरक्षित है l

धन्यवाद 🙏 


नाम- मंजू कुशवाहा "अरुणिमा "
इंदिरापुरम,गाजियाबाद उत्तरप्रदेश 

आजादी - संजय वर्मा"दॄष्टि"


आजादी - संजय वर्मा"दॄष्टि"खुली 

सांसों में जीने वालों
आजादी का मतलब समझो
आजादी दिलाने वाले
शहीदों को करों नमन
ऐ मेरे वतन ऐ मेरे वतन।

नन्हे बच्चे आँखों मे आंसू भरे
राह तक रहे कब से पापा के आने की
घर परिवार को चिंता पास बुलाने की
मृत शरीर मे कैसे ढूंढे अपनों की तस्वीर
ऐ मेरे वतन ऐ मेरे वतन।

अपने देश मे करेंगे विकास
अब कोई नही जाएगा 
कमाने को विदेश 
आतंकियों को करेंगे खत्म
ये फैसला अब दिखा देंगे जमाने को
ऐ मेरे वतन ऐ मेरे वतन।

जिंदगी इतनी सस्ती नही होती
सदिया बीत जाती नाम कमाने को 
युद्ध से खत्म करो आतंकियों को
और अब तो कर दो बेहाल 
मेरे भारत माता के लाल 
ऐ मेरे वतन ऐ मेरे वतन।

संजय वर्मा"दॄष्टि"
मनावर जिला धार मप्र

नियम - सागर सिंह भूरिया

                                                                            नियम - सागर सिंह भूरिया

       नियम हमेशा दुनिया के भले के लिये बनाये जाते है। जिनका सभी को पालन करना होता है। नियम के अनुसार ही ईश्वर ने सारी सृष्टि का सृजन किया है। 
        ये सारा सच है कि जब इन्सान अपने चन्द फायदे के लिए कुदरत के बनाए हुए नियमों का उलंघन करता है तब कुदरत वो भयानक सज़ा देती है जिसका परिणाम सारी दुनिया को भुगतना पड़ता है।
        ये सबके सामने सारा सच है कि इस बार हिमाचल,उत्तराखण्ड,जम्मू-कश्मीर तथा कई अन्य जगहों में भीषण तुफान,पहाड़ों में भूस्खलन, कहीं आसमान से अचानक बादल फटने की भयानक घटनाएं हुई। जिसके कारण हजारों लोगों के जान-माल का नुकसान हुआ। जिससे कई निर्दोष जानें चली गई। 
        इसके लिए इन्सान खुद दोषी है। कहीं पहाड़ों के नीचे से सूरगें निकाली जा रही है। बेवजह जमीन की खुदाई करके इसे खोखला किया जा रहा है।  दुसरी तरफ दुनिया में हथियारों की होड़ मची है। ढेरों विस्फोट कीये जा रहे हैं। जिससे धरती का भीतर से तापमान बढ़ रहा है। जो कुदरत के नियमों के खिलाफ है।
      हमें उक्त घटनाओं से सबक लेते हुए अपनी कार्यशैली में सुधार करने की बहुत जरूरत है।
       इसलिए आओ हम सब अपना फर्ज समझकर ईमानदारी के साथ प्रत्येक नियमों का पालन करें चाहे वो ईश्वर के बनाए हो या इन्सान के द्वारा बनाए गए हो। 
          
                          सागर सिंह भूरिया,
                     बैजनाथ, कांगड़ा, (हिमाचल प्रदेश)

Monday, 24 November 2025

मुस्कुराते रहो - नीलम गुप्ता

मुस्कुराते रहो - नीलम गुप्ता

माना गम हजारों है यारों
पर खुलासा क्यों ही करें
सताया तो बहुत है जिंदगी ने
पर अब तमाशा क्यों ही करें

उतार ,चढ़ाव बहुत आए मगर
रोते रहने का ढोंग क्यों ही करें
होगी जिंदगी हम पर कितनी भी हावी
मुस्कुरा कर उसका स्वागत क्यों ना करे

कोई साथ बेशक ना दे मेरा
हम ख़ुद के साथ सदा खड़े रहें
चार लोग हंसते है तो हंसने दे
उन चारों की परवाह हम क्यों करें

हां ,बेशक कामयाब ना हुए हम
जश्न में कोई कमी हम क्यों करें
माना अख़बार में फ़ोटो नहीं छपती मेरी
खुद की तस्वीर पर नाज़ क्यों ना करें

माना मेरा चाहा नहीं हुआ पूरा यारों
जो मिला उसका शुक्रिया अदा करें
कुछ काश तो रह ही जाते जिंदगी में
इन काश को हावी हम क्यों ही करे

मुस्कुराते चेहरे लुभाते है सभी को
तो हम भी एक मुस्कान क्यों ना धरे
हां, नहीं है  हम कोई महान हस्ती यारों
पर खुद की मस्ती में कमी क्यों ही करें

स्वरचित ✍️
नीलम गुप्ता 
उत्तर प्रदेश 

सफलता - सुधा बसोर सौम्या

हमारीवाणी साप्ताहिक प्रतियोगिता 
मेरी कलम मेरी पहचान 
विषय - सफलता 
सादर प्रेषित 

सदा आगे  ही बढ़ो संघर्ष जीवन में करो 
बाधाएं कितनी भी आऍं मत उनसे डरो।

पुष्पों से सुरभित नहीं सफलता की राह
भूल जाओ यदि हो मन में ऐसी कोई चाह।

कंटक पथ पर चलते यदि तुम जाओगे 
साहस के फूल बिछा सफलता पाओगे।

सफलता मिलना है नहीं तनिक भी आसान 
 दुनिया के षडयंत्रों को भी तुम लो पहचान।

मंजिल तुमसे कितनी भी हो दूर मगर 
पाओगे निश्चित ही रखोगे हौंसला अगर।

सफल आप जब हो जाओगे 
मन में फूले  नहीं समाओगे।

 पर सफलता तुमको मिलते ही
मन उपवन तुम्हारा  खिलते ही।

 तुम्हें तुम्हारी सफलता के राज बताए जाऍंगे 
षड्यंत्रों  में उलझा असफल  लोग खुशी मनाऍंगे।

मत घबराना मत रुकना तुम
 कभी बदल भी  मत जाना ‌तुम।

हे कर्मवीर हे धर्मवीर जीवन में होकर सफल 
  गर्वित हो जिओ जीवन रख इरादे अपने अटल।
                  
सुधा बसोर सौम्या 
                   उत्तर प्रदेश 

गम - राजवाला पुँढीर

 

गम - राजवाला पुँढीर

जिंदगी में है गम,सुनलो हमरे सनम
दूरियां बढ़ गयीं, ऐसे हालात थे।
दिल्लगी में सनम,हुआ हमको भरम
तालियां बज गयीं,ऐसे हालात थे।।

जो ना सोचा कभी आज वो होगया
क्या भाग्य हमारा आज ही सोगया?
खामियाँ दिख गयीं ऐसे ख्यालात थे।

नींद में भी हमें झटके आने लगे
भीड़ में भी हमें वो बेगाने लगे
चिट्ठियां फटगयीं ऐसे अवसाद थे।

प्यार के बदले में हमको गम मिला
जोति के बदले में हमको तम मिला
बोलियां चुभ गयीं ऐसे सवालात थे।

कभी होती खुशी कभी होता है गम
कभी दिखती किरण कभी होता है तम
ये अँखियाँ रोगयीं ऐसे जज्बात थे।

कोई भी अपना तो नहीं लगता हमें
कोई भी सपना तो नहीं दिखता हमें
गालियाँ मिल रहीं ऐसे हवालात थे।

हम भी टूटने लगे गम इतना मिला
अब तो भूलने लगे हम शिकवा गिला
डोरियां कट गयीं ऐसे आलात थे।

ऐसा लगता हमें सब चिढ़ाने लगे
अपने खुशियों भरे पल दिखाने लगे
ये अँखियाँ भी झुक गयीं बकवाद थे 
  
जिंदगी मर गयी हम भी मुरझा गये
वंदिगी जुड़ गयी हम भी भगवा भये
कापियाँ लिख गयीं ऐसे आघात थे।

अजनबी हम तो बनगये अपनों केलिए
 चमकती शान बनगये गैरों केलिए
डालियां झुक गयीं ऐसे बरसात थे।

लिखती पुँढीर है जिंदगी का सफर
बँधती न धीर है बाँध टूटा सबर
बादिया लिख गयीं ऐसे सौगात थे।

स्वरचित
कवयित्री राजवाला पुँढीर
उत्तर प्रदेश