Tuesday, 30 September 2025

हिन्दी दिवस पर विशेष - डॉ प्रमोद कुमार कुश 'तन्हा'

हिन्दी दिवस पर विशेष - डॉ प्रमोद कुमार कुश 'तन्हा'           

जिस भाषा में दूसरी भाषाओं के प्रचलित शब्दों को समाहित करने की क्षमता और स्वीकार्यता होती है, वह भाषा कभी भी दुर्बल नहीं हो सकती। हिन्दी भाषा ने भी बहुत खुलेपन से दूसरी भाषाओं के आम प्रचलित शब्दों को अपनाया है। 

उदाहरण के लिए अंग्रेजी के कुछ प्रचलित शब्द जिन्हें हिन्दी भाषा ने सहजता से अपनाया है: 
हॉस्पिटल, ट्रैक्टर, स्टेशन, स्कूल, सिमकार्ड, फोन, लिफ्ट, फ़िल्म, डॉक्टर, न्यूज़, फ़ाइल, क्रिकेट, रेल, एयरपोर्ट, कोचिंग, गेम आदि आदि।

उर्दू के कुछ प्रचलित शब्द जिन्हें हिन्दी भाषा से अलग कर पाना मुश्किल है: 
मजबूर, मज़बूत, कमज़ोर, फ़ैसला, सुब्ह, फ़क़ीर, दावत, मुहब्बत, नफ़रत, दुश्मन, ज़मीन, शह्र, फ़िक्र, ज़िन्दगी, मरीज़ वगैरह वगैरह।

अंग्रेज़ी भाषा ने भी हिन्दी और उर्दू के बहुत से शब्दों को अपनाया है। उदाहरण देखें:
घेराव, लाठीचार्ज, परांठा, भेलपुरी, रायता, बाज़ार, जंगल, नमस्ते, चाय, गुरू, जुगाड़ आदि आदि।

जो भाषा समय के साथ नहीं चल पाती और जिसमें दूसरी भाषाओं के प्रचलित शब्दों को स्वीकार करने की क्षमता अथवा खुलापन नहीं है, वह भाषा धीरे धीरे अपने महत्व और अस्तित्व से संघर्ष करती रहती है। 

हिन्दी भाषा में क्षमता भी है और स्वीकार्यता भी है।

जय हिन्द, जय हिन्दी

© डॉ प्रमोद कुमार कुश 'तन्हा'
मुंबई

कवि, ग़ज़लकार, फ़िल्म गीतकार एवं लेखक 
*पूर्व निदेशक/ वैज्ञानिक एवं हिन्दी नोडल अधिकारी* 
  (भारतीय मानक ब्यूरो, केन्द्र सरकार)

हिन्दी मेरी पहचान हैं - प्रदीप कुमार नायक

 आखिर हिन्दी को किससे खतरा? 

 .   . हिन्दी मेरी पहचान हैं
             प्रदीप कुमार नायक
          स्वतंत्र लेखक एवं पत्रकार
                    भारत ने विगत दिनों 14 सितंबर को हिन्दी दिवस बड़े ही धूमधाम से मनाया l यह अवसर जश्न मनाने के साथ आत्म चिंतन करने का भी था l जिस देश में गाड़ी पर हिन्दी में प्लेट नम्बर लिखने से चालान कट जाता हैं, जहाँ नब्बे प्रतिशत लोग अंग्रेजी में हस्ताक्षर करते हैं, मोबाइल में जहाँ हिन्दी के लिए दो दबाना पड़ता हैं, एवं जिस देश की अदालत में न्याय के लिए बहस हिन्दी में नहीं सुनी जाती हैं, डॉक्टरों का पुर्जा जहाँ हिन्दी में नहीं लिखा जाता हैं l ऐसे देशवासियो ने 14 सितंबर को हिन्दी दिवस धूमधाम से मनाया, और बधाईयां दी l
                    14 सितम्बर यानि हिन्दी दिवस हम और आप सभी जानते हैं l क्या आम और क्या खास सब हिन्दी की जय करते हैl लेकिन व्यवहार में क्या होता हैं,लोग फिर अंग्रेजी को तरजीह देंगे l आखिर स्टेट्स सिम्बल का सवाल जो हैं l गौरतलब तो हैं कि स्वतंत्रता आंदोलन से लेकर आज तक हिन्दी पूरे देश को एकता के सूत्र में पिरोते आई हैं l हिन्दी केवल एक भाषा भर नहीं,बल्कि हमारी सभ्यता, संस्कृति, कला, इतिहास, धर्म और परम्परा की पहचान भी हैं l
            आज हिन्दी के बिना न तो भारतीय साहित्य का कोई अर्थ हैं और न ही राष्ट्रीय संस्कृति की कोई पहचान l हिन्दी सदा लोकभाषा रही हैं l लेकिन राजप्रिय नहीं हो सकी l हिन्दी पर फ़ारसी इस्लामी शासको ने थोपी l फ़ारसी को राजाश्रय तो मिला लेकिन हिन्दी जीवंत रही l अंग्रेजो ने अंग्रेजी को तवज्जो दी फिर भी हिन्दी जन -गण की भाषा बनी रही l स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भी निज भाषा उन्नति को अपनाने के बजाये भारत का प्रभु वर्ग अंग्रेजी का गुलाम बने रहे l अंग्रेजी विदेशी भाषा हैं l विदेशी भाषा का ज्ञान गलत नहीं हैं l यूं भी भाषा ज्ञान वान्छनीय नहीं होता l फिर भी परम्परा -परिवार, समाज, संस्कृति, समायोजन और एक राष्ट्र के सूत्र स्व -भाषा में ही सुदृढ़ होते हैं l यूं भी एक ही शर्त पर दूसरी भाषा का विकास न्यायोचित नहीं हो सकता l
              काबिल -ए -गौर तो हैं कि 1916 के अखिल भारतीय भाषा सम्मलेन में राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी ने कहाँ ठा कि अंग्रेजी बोलने में मुझे पाप लगता हैं l क्योंकि यह राज -दरबारियों की हनक-ठसक की बोली हैं,जबकि हिन्दी मन और सौंदर्य की भाषा हैl यह बनावटीपन से कोसों दूर हैंl हिन्दी हमें नागरिक बनाती हैं, किन्तु अंग्रेजी उपभोक्ता बनाती हैl
             14 सितम्बर 1949 को संविधान के अनुच्छेद 343 में देश की राजभाषा हिन्दी एवं लिपि देव नागरी की बात कहीं गई हैं l 15वर्षो तक अंग्रेजी को राजकाज की भाषा बनाई गई l लेकिन आज सात दशक बीतने के बाद भी अंग्रेजी महारानी और हिन्दी नौकरानी बनी हैं l
                  गौरतलब हैं कि देश में आज भी 95 प्रतिशत लोग ऐसे हैं जो अंग्रेजी बोलने और समझने में पूरी तरह से असमर्थ हैं l इसके बावजूद हमारे देश के अधिकतर कामकाजों दफ़्तरों में अंग्रेजी का ही प्रचलन हैं l उच्च न्यायालयों तथा सर्वोच्च न्यायालय के कामकाज और फैसले सारे अंग्रेजी में ही होते हैं l जिसका प्रभाव इन 95 प्रतिशत लोगों पर पड़ता हैं l इन लोगों को पूरी तरह से वकील अथवा अधिकारियों पर निर्भर रहना पड़ता हैं l अत:वादी तथा प्रतिवादी दोनों को आगे की प्रक्रिया समझने में काफ़ी दिक्क़त होती हैं,अथवा समझ ही नहीं आती l
                   आज भारत ही नहीं बल्कि विदेश भी हिन्दी भाषा को अपना रहे हैं,तो फिर हम देश में रहकर भी अपनी भाषा को बढ़ावा देने के बजाय उसको ख़त्म करने पर क्यों तुले हैं ? सवाल हैं कि सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई भारत सरकार की राष्ट्र भाषा में क्यों नहीं होती हैं ? भारत के संविधान में लिखा हैं कि अंग्रेजी सिर्फ राजभाषा को सहयोग करेगी l देश के संवैधानिक पद पर बैठने वालों के लिए भारत सरकार की राजभाषा जानना अनिवार्य क्यों नहीं होना चाहिए ? हमारा देश भी गज़ब हैं l सजा सुनाई जाती हैं,जिरह किए जाते हैं,पर दोषी और दोष लगाने वाले को यह पता ही नहीं चलता कि यह लोग क्या बहस कर रहे हैl कभी कोर्ट में जाकर देखे तो इन सब पर दया आती हैं l कटघरे में खड़े कभी अपने वकील, कभी विपक्षी वकील तो कभी जज को देखते रहते हैं l बाहर आकर पूछते हैं क्या हुआ ? इस अवस्था को हम क्या न्याय मानेंगे ?
              आजादी के समय यह निर्णय लिया गया था कि सन,1965 तक  अंग्रेजी को काम में लिया जायेगा और हिन्दी को राजभाषा का दर्जा डे दिया जायेगा l परन्तु सन,1963 के राजभाषा अधिनियम के तहत हिन्दी के साथ -साथ अंग्रेजी को भी शामिल कर लिया गया l विश्व में अनेक देश जैसे इंग्लैंड, अमेरिका, जापान, चीन और जर्मन आदि अपनी भाषा पर गर्व महसूस करते हैं तो हम क्यों नहीं ?
                     यू. एन. ओ. के आधिकारिक भाषा विभाग की आंकड़ों की माने तो आज विश्व स्तर पर जितनी भाषाएँ बोली जाती हैं, उनकी संख्या या तो हिन्दी के बराबर हैं या उससे कम हैं, सिवाय मंदारिन को छोड़कर l आंकड़ों से स्पष्ट होता हैं कि दुनियां का हर तीसरा व्यक्ति हिन्दी भाषी हैं l दुनियां के 163 विश्व विधालयों में बतौर पाठ्यक्रम हिन्दी में पढ़ाई जाती हैl गौरतलब हैं कि यू. एन. ओ. के महासचिव ने हिन्दी को अंडरस्टैंडिंग एवं हारमोनी की भाषा माना हैं l भूमंडली करण एवं आर्थिक उदारीकरण के दौर में हिन्दी की दुनियां बदली हैं l विश्व व्यापार संगठन ने भी माना हैं कि भारत दुनियां का सबसे बड़ा बाजार हैं l भारतीय बाजार एवं व्यापारिक मंडी को हिन्दी के बिना नहीं जीता जा सकता हैं l क़स्बाई बाजार से लेकर महानगरीय बाजार तक में हिन्दी का बोलवाला हैं l
               सरकार को चाहिए कि यूरोपियन यूनियन "यूरो " की तर्ज पर दक्षेस देशों की आधिकारिक भाषा के रूप में हिन्दी को स्थापित करने का प्रयास तेज करेl हिन्दी को पाठ्यक्रम रोजगार परक कार्यक्रम से जोड़ा जाएं l बैंकों, सरकारी कार्यालयों एवं  शैक्षणिक संस्थानों में हिन्दी की अनिवार्यता बढ़ाई जाए l सरकार की यह संवैधानिक उत्तर दायित्व भी बनती हैं l जैसा कि नामचीन साहित्यकार भारतेन्दु हरिश्चन्द्र ने भी माना हैं कि निज भाषा उन्नति, अहै सब उन्नति l हम सभी को भी इसे आत्मसात करना चाहिए कि ये जो हिन्दी हैं हमारी जिन्दगानी हैं l
                    अगर हम हिन्दी के लिए गंभीर होकर हिन्दी भाषा को उसकी देश में सर्वोच्च स्थान दिलाना चाहते हैं तो इसके लिए हमारे राजनैतिक नेतृत्व को राष्ट्रभाषा के रूप में सभी संवैधानिक संस्थानों को प्रथम भाषा के रूप में हिन्दी को अपनाने पर जोर देना होगा और राष्ट्र के प्रमुख तीन स्तम्भ कार्य पालिका, विधायिका और न्यायपालिका को अंग्रेजी को एलीट क्लास समझने की मानसिकता से बाहर आना होगाl जरुरत हैं इच्छा शक्ति की और जब आज आजादी के सात दशक बाद भी हिन्दी को सम्मान नहीं मिलेगा तो फिर कब मिलेगा ?

कोहराम - डॉ० अशोक

कोहराम - डॉ० अशोक

धुएँ के साये,
बिखरे अरमानों की
करुणा गूँजे।

नदी की लहरें,
लालिमा से बोझिल—
नावें ठहरीं।

टूटे परों से,
अब भी आसमान चूम—
पक्षी तड़पें।

किताब के पन्ने,
आँसू से भीग उठे—
मौन बचपन।

अंगार बरसे,
धरती का दिल झुलसा—
हिरणी विलाप।

मंदिर के आँगन,
घंटी की नाद टूटी—
ईश्वर खामोश।

सन्नाटा पसरा,
ममता की आँखें भरीं—
राख बिखरी।

गली के कोने,
हर दीवार रो उठी—
कोहराम गहरा।

डॉ० अशोक, पटना, बिहार।


भ्रष्टाचार - महाकवि अनन्तराम चौबे अनन्त

भ्रष्टाचार - महाकवि अनन्तराम चौबे अनन्त


सरकारी आफिस जो भी है
ज्यादा भ्रष्टाचार वहीं होते है ।
चपरासी से लेकर अफसर तक
भ्रष्टाचार में सभी शामिल रहते हैं। 

कोर्ट कचहरी थानों में सबसे 
ज्यादा भ्रष्टाचार यहीं होता है।
आये दिन पेपरों में रिश्वत ल़ेने का
मामला प्रकाशित  होता रहता है ।

निचले कोर्ट से सुप्रीम कोर्ट तक 
भ्रष्टाचार बिना काम नहीं होता है ।
सुप्रीम कोर्ट में एक दो बड़े वकीलों
की मर्जी से रात में कोर्ट खुल लाता है।

दिल्ली के जज के बंगले में लाखों के
नोटों के बंडल जले हुए मिलते हैं ।
केश बनता न एफ आई लिखी जाती 
काली कमाई  समझ आती है ।

कुछ भ्रष्टाचारी जज वकीलों,
दलालों से शासन तंत्र बदनाम है ।
कहने को सभी ईमानदार हरिश्चंद्र है
जो पकड़ गया वो ही तो बदनाम है

भ्रष्टाचार कब कैसे होता
बात समझ में कुछ न आये ।
भ्रष्टाचार एक माध्यम होता
आपस में काम जो करवाये ।

समय किसी के पास नहीं है
इन्तजार नहीं किसी से होता ।
पैसा जो भी खर्च हो जाये 
काम समय पर हो जाता है ।

थोड़ा सा पैसा लग जाए
कोई भी मर्जी से दे देता है ।
लेने देने बालों की मर्जी से
काम दोनों का बन जाता है ।

भ्रष्टाचार का रूप हो छोटा
कोई शिकायत नहीं करता है ।
भ्रष्टाचार का रूप बड़ा हो
नीयत में खोट तब होता है ।

कोर्ट कचहरी थानों में ही
भ्रष्टाचार सबसे ज्यादा होता है
भ्रष्टाचार के बिना यहां पर
कोई भी काम नहीं होता है ।

देश भक्ति जन सेवा के नाम से
थानों में सभी प्रताड़ित होते हैं ।
जैसा जो  यहां चढ़ावा देता है
वैसे  ही छोटा बड़ा केश बनाते हैं ।

अदालत में जहां न्याय मिलता है
भ्रष्टाचार वहां खुलेआम होता है ।
जज के सामने बाबू बैठे रहते
और पेशी बढ़ाने का पैसा लेता है ।

लेने देने बाले दोनों आपस में
एक दूजे को लेते और देते हैं ।
दोनों आपस में खुश होते हैं
क्योंकि दोनों के काम हो जाते हैं ।

किस तंत्र की कैसे बात करूं 
भ्रष्टाचार हर जगह फैला हुआ है ।
भ्रष्टाचार एक विभाग खुल जाये
फिर भी भ्रष्टाचार न बंद होना है ।

  महाकवि अनन्तराम चौबे अनन्त
       जबलपुर म प्र 

वृक्ष ही जीवन - श्रीमती मालती गेहलोद

वृक्ष ही जीवन - श्रीमती मालती गेहलोद

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वृक्ष  सदैव  संकट में घिरा रहता,
भूकंप, बाढ़, सुनामी  में  स्थिर रहता।
लाखों तूफान आए ,विचलित नही होता, अपने  धैर्य, सहनशीलता का परिचय देता।

वह सदैव अपनी मिट्टी से जुड़ा रहता, चाहें लाख संकट आये, दृढता से खड़ा रहता।

उदारता इतनी छाया, फल-फूल निःस्वार्थ बाँटता, हवा, पानी शुद्व कर ,जीव जंतुओं को आश्रय देता।
 
हर मौसम में तठस्थ व अडिग रहता , प्रकृति को सदैव सन्तुलित  व सुन्दर  बनाएं रखता।

 सदैव प्रकृति व प्राणियों में सामंजस्य स्थापित करता , वृक्ष सम्पूर्ण प्राणी जगत में सांसो का संचार करता ।

वृक्ष पातक को भले कानून सजा न दे पाता, किंतु वह कुदरती न्याय से कभी नही बच पाता।

आज मानवजाति  संकट में घिरा, संकल्पित हो उठा, इस भारत भूमि को,  मै कर दूँगा  हरा -भरा।
🪷🪷🪷🪷🪷🪷🪷🪷
लेखक- श्रीमती मालती गेहलोद
                मंदसौर (म.प्र.)

सरकार

सरकार

क्यों,जनता के गुबार का
लक्ष्य होती है "सरकार"।
किसके दबाव में करते है
उस पर शब्दों की धार,मार।
क्या हमने पल भर को भी माना "सरकार"के देश हित
किए गए फर्ज पर दो शब्दों का नन्हा सा आभार ?
         सर्वप्रथम,सोचने का
विषय है कि क्या "सरकार"
कोई एक व्यक्ति मात्र है,अथवा हाड़ मांस से बना
स्वार्थी पुतला,है जिस पर जनता सामाजिक,राजनैतिक
नैतिक,अनैतिक तौर,तरीके से
अपना सारा क्रोध,भड़ास से भरा कलश फोड़ना चाहती है।
उसे अपनी उंगलियों पर नाचने को बाध्य करना चाहती
है।
सच कुछ और ही है। जनता
कई,कई वर्गों में बंटी होती है
जिनके पीछे भ्रष्ट लोगों के ग्रुप
होते हैं जो स्वार्थवश जनसमुदाय का इस्तेमाल कर
अपना उल्लू सीधा करते है,
अफवाहों के जाल बुने जाते
है,गरीब और जरूरत मंद चंद
रुपयो के खातिर अपना ईमान बेचने को राजी हो जाती है। वह योग्य,अयोग्य कार्य कर्ताओं  की पहचान नहीं कर पाती,।यहां तक कि
"सरकार" की उपयोगिताओं को भी नजर अंदाज कर दिया जाता है। खुल्लम खुल्ला विद्रोह पनपता है, प्रजातंत्र का मजाक उड़ाया जाता है।और इस तरह जनता बिना सोचे समझे भेड़ चाल में चल पड़ती
है।नेता और दादा टाइप वाशिंदे जनता को सरकार के
विरुद्ध भड़काने के लिए साम,दाम,दंड भेद सबका उपयोग कर अपनी अलग
जाल साजी सरकार बनाने में
जुट जाते है। अनपढ़ और सरल जनता योग्य और अयोग्य "सरकार" को नहीं
परख पाती।

   हमे यह सोचना होगा कि
"सरकार" किसी भी पार्टी की
हो,उसमें आसीन कार्य करता
गुणी,त्यागी,देशभक्त और जनता के रक्षक हों।
हमारा फर्ज है, 
हमने जिन्हें चुनकर
केंद्र में भेजा है,उनका हम
सम्मान करें,उन पर अटल
विश्वास रखें।  "सरकार" में
बैठे शख्स भी इंसान हैं, उनसे
भी गलतियां हो सकती है,उन्हें समय दें,उनके कार्य में
सहयोगी बनें राह का रोड़ा नहीं। हर कार्य के लिए उनपर निर्भर नहीं रहें,अपितु हम
ईमानदारी से अपने अपने फर्ज निभाएं। यक़ीनन "सरकार" और जनता एक
दूसरे के पूरक हैं । एक दूसरे
पर भरोसा ही हमारे  भारतवर्ष को एक सशक्त
राष्ट्र बनाएगा।  
       जय हिंद, जय भारत

Monday, 29 September 2025

उत्कृष्ट अभिव्यक्ति का माध्यम हिन्दी - डॉ. रीना रवि मालपानी

उत्कृष्ट अभिव्यक्ति का माध्यम हिन्दी - डॉ. रीना रवि मालपानी


भाषा की सर्वोत्तम उत्कृष्टता को प्रदर्शित करने का सशक्त माध्यम है हिन्दी। हिन्दी की सहजता, सरलता, सरसता अद्वितीय है। प्रत्येक भाषा अपने आप में निपुण है, परंतु शब्दों की सुंदरता से आलोकित एवं सुशोभित हिन्दी भाषा अप्रतिम है। यह सत्य है कि भाषा विहीन व्यक्ति कभी भी उन्नति के मार्ग पर अग्रसर नहीं हो सकता। भाषा ही हमारी उन्नति को पल्लवित, पुष्पित एवं चहुं ओर हमारे विकास को प्रसारित करती है। हिन्दी में विचारों के प्रवाह का अद्वितीय सौंदर्य विद्यमान है। 

*भाषा की अस्मिता का गौरव गुणगान है हिन्दी।*
*वेदनाओं एवं भावनाओं की यथार्थ अभिव्यक्ति है हिन्दी।*
*समस्त भाषाओं को कदमताल देती उन्नत स्वरूप है हिन्दी।*
*सूक्ष्म, अमूर्त और जटिल अनुभवों का सहज सम्प्रेषण है हिन्दी।*

 अंग्रेजी हमने सहर्ष नहीं अपनाई थी, वह तो अंग्रेज़ो द्वारा हम पर थोपी गई थी। आज भी हम उसी जंजीर के गुलाम बने हुए है। भाषा की गुलामी की जंजीरों और बेड़ियों को तोड़कर हमें एकमत होना होगा। हिन्दी की अनुभूति कितनी अनुपम है यह उसमें निहित शब्दों का चयन प्रदर्शित करता है। हिन्दी तो वह है जो नैतिकता को सहेजती है। निर्मल गंगा सा भाव एवं प्रवाह उत्पन्न करती है। साहित्य को शिरोधार्य बनाती है। कवियों की ललकार और भाषा की बयार से उन्नति के सोपान को छूती है। भारत माता के प्रति अतुलनीय प्यार के अनुपम स्वर में व्याप्त है हिन्दी। हिन्दी भाषा का अनोखा दर्पण है। हिन्दी में भावों को मुख से मन तक समर्पित करने की उत्कृष्टता है। 

भाषा की धुरी पर स्वाभिमान का आविर्भाव है हिन्दी। जब भी साहित्य का सृजन किया जाता है तो हर पात्र को जीवंत बनाकर पाठक के समक्ष प्रस्तुत करती है हिन्दी। नए भारत में उन्नति और उत्थान के भाव को संवाहित करने का सामर्थ्य हिन्दी में ही है। यदि भाषा की होली के उत्सव को हिन्दी से सजाया जाए, औजपूर्ण हिन्दी के माधुर्य को मुख पर गुनगुनाया जाए, अलंकारों के रंगों से अभिव्यक्ति को नित-नवीन बनाया जाए और हिन्दी के प्रयोग से काव्य रचना के स्वर से हृदय को आलोकित किया जाए तो मन रूपी हृदय में उन्नति, उत्साह और उमंग के रंग को बिखरने का अनुपम सौन्दर्य हिन्दी में ही है। राष्ट्र की उन्नति में माँ की ममता के आशीर्वाद का रूप हिन्दी प्रकट करती है। 

*जीवन की समग्रता का अंकन है हिन्दी।*
*सांकेतिकता, प्रतिकात्मकता का उत्कृष्ट आयाम है हिन्दी।*
*मानवीय भावों का यथार्थ चित्रण है हिन्दी।*
*अभिनव मूल्यों के उद्घाटन की चेतना है हिन्दी।*

वर्तमान समय में अंग्रेजी ही आधुनिकता का आधार मानी जा रही है। भावी पीढ़ी की दृष्टि में हिन्दी का महत्व न्यून है। कितनी बड़ी विडम्बना है इस देश और समाज की कि हम अपने पूर्वजों की धरोहर जो हमें अनायास और सहजता से मिली है उसे ठुकरा रहे है और अंग्रेजों द्वारा परोसी गई भाषा को ग्रहण कर उसका उन्नयन कर रहे है। भाषा हमारी संस्कृति की अस्मिता और धरोहर है। यह केवल संवाद का माध्यम ही नहीं अपितु विचारों, भावनाओं एवं संवेदनाओं का उद्वेग है। उन्नति के सोपान की ओर कदम बढ़ाते वक्त अंग्रेजी को भी सीखना चाहिए, परंतु हिन्दी के प्रति अपने प्रेम को भी जीवंत एवं निष्ठावान रखना होगा। भाषा के विभिन्न स्वरूपों में अंग्रेजी भी ज्ञान का ही एक रूप है, परंतु मातृ भाषा की कीमत पर हिन्दी को तुच्छ समझकर अंग्रेजी को आत्मसात करना उचित नहीं है। उत्तर, दक्षिण, पूर्व और पश्चिम में प्रेम एवं स्नेह का सरल रूप हैं हिन्दी। हिन्दी अवधि, ब्रज, भोजपुरी इत्यादि सभी भाषाओं को समन्वय प्रदान करती है। 

आज हमारे संस्कारों में अंग्रेजी घुल रही है। आज का युवा वर्ग अंग्रेजी में धारा प्रवाह होना ही अपनी उच्चता का मानक मान रहा है। वह मनोभावों की भाषा समझने में असमर्थ है। अंग्रेजी बोलना समाज में प्रतिष्ठा का प्रतीक बनती जा रही है। समाज में उन्नति के मापदंड हेतु अंग्रेजी बोलना चयनित किया जा रहा है। मातृ भाषा भारत वासियों के बीच हीनता का अनुभव कर रही है। यह हमारी भाषा की अस्मिता पर प्रश्न चिन्ह है। भाषा की दुर्बलता राष्ट्र की अभिव्यक्ति में न्यूनता को प्रदर्शित करती है। वह राष्ट्र की पहचान को क्षीण करती है। वैश्विक युग में सफलता के शीर्ष पर पहुँचते वक्त प्रत्येक भाषा को अपनाना होगा, पर हिन्दी के प्रति प्रेम में कृपणता परिलक्षित न करें। हिन्दी हमारी सांस्कृतिक धरोहर का अद्वितीय संकलन है हमें इसे सहेजना होगा। आत्मविश्वास से एवं पूर्ण निष्ठावान होकर इसे आत्मसात करना होगा। यह आत्मा के स्वरों का बोध है। हिन्दी सांस्कृतिक स्वरूप का एक ओजस रूप है। हिन्दी तो सर्वगुण सम्पन्न भाषा का दर्पण है। यह भाषा राष्ट्र के प्रति समर्पण है। एक स्वर और एक नाद से हम भारत वासियों को हिन्दी भाषा में अभिव्यक्ति को स्वीकारना चाहिए। 

*कथ्य के अनुरूप रचना संकलन को पहचान देती है हिन्दी।*
*पात्रो-चरित्रों के उद्घाटन का सजीव रूप है हिन्दी।*
*संवाद एवं प्रसंगानुकूल रोचकता की जनक है हिन्दी।*
*डॉ. रीना कहती, भाषा के सौन्दर्य की अनुपम छटा बिखेरती है हिन्दी।*


*डॉ. रीना रवि मालपानी (कवयित्री एवं लेखिका)*
जम्मू एंड कश्मीर

नियम - कानून - महाकवि अनन्तराम चौबे अनन्त

नियम - कानून - महाकवि अनन्तराम चौबे अनन्त

नियम कानून संसद में बनते
जो बहुमत से पास होते हैं ।
सत्ता पक्ष और विपक्ष के
सांसद अपना पक्ष रखते हैं ।

संसद में कानून पास होता है
राष्ट्रपति के हस्ताक्षर होते हैं ।
ऐसे बने कानून को फिर क्यों 
सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देते हैं ।

280 सांसदों की सहमति से
नियम कानून जो पास होते हैं ।
कोर्ट के दो चार जज क्या ऐसे 
नियम कानून रोक सकते हैं ।

संविधान के संशोधन भी 
संसद में ही पास होते हैं ।
पूरे देश के चुने सांसद ही
नियम कानून में सहमति देते है। 

नियम, कानून, कोर्ट, फैसला,
वकील बीच में इसके रहते है ।
अन्याय जहां जब भी होता है
न्याय पाने को कोर्ट जाते है ।

कोर्ट कचहरी और थाने में
न्याय मांगने सब जाते हैं ।
न्याय अन्याय के चक्कर में
दोनों पक्ष यहां पर जाते हैं।

न्याय अन्याय के फैसले में
कानून से फैसला होता है ।
वकील कोर्ट में जिरह करते है
गवाह और साक्ष्य रखते हैं ।

अपराधी मामले पुलिस देखती
जांच के वाद रिपोर्ट को लिखती ।
चार्ज सीट जब कोर्ट में जाती
सुनवाई केश की तब है होती ।

कानून तो बस अंधा होता है
साक्ष्य और गवाह मांगता है ।
सच को झूठ और झूठ को सच
वकीलों की जिरह से होता है ।

न्याय पाने के चक्कर में कोर्ट में
दस बीस साल गुजर जाते हैं ।
तारीख पर तारीख कोर्ट से मिलती
समय और पैसा बरवाद होते हैं ।

वकीलों की रोजी रोटी चलती है
हर पेशी में फीस जो मिलती है ।
वकीलों का काम जिरह करना है
मानवता वहां तार तार होती है ।

अपराध और दुष्कर्म के मामले में
महिलाओं की इज्जत लुटती है ।
न्याय को पाने कोर्ट जो जाता
उसकी भी इज्जत लुट जाती है ।

न्याय कानून कोर्ट के फैसले
वकीलों के माध्यम से चलते हैं ।
सारा सच न्याय मिले या न मिले
जीवन तो बर्बाद  हो जाते हैं  ।

न्यायालय है न्याय का मंदिर
न्याय पता नहीं कब होता है।
किसको न्याय कब मिलता है
समय का न कुछ पता होता है ।

माध्यम वकील न्याय में होते
जो अपना धंधा करते हैं ।
सारा सच वादी, प्रतिवादी के 
पक्ष में वकील खड़े रहते हैं ।

कौन सच्चा और कौन झूठा है
दोनों पक्ष अपना रखते हैं ।
दोनों जीत का वादा करते
मन मानी फीस जो लेते हैं ।

गारंटी नहीं किसी केश की
हार जीत कब किसकी होगी ।
वकील फीस अपनी लेते हैं
अगली तारीख बढ़ा लेते हैं 

सारा सच फैसले की गारंटी नहीं 
तारीख पर तारीख  ही मिलती है ।
दस बीस साल केश चलते हैं
खर्च की कोई सीमा नहीं होती है ।

नियम कानून पर क्या लिखूं 
बात समझ में कुछ न आए ।
संसद बड़ा या कोर्ट बड़ा है
कैसे ये नियम समझ में आए ।

  महाकवि अनन्तराम चौबे अनन्त
    जबलपुर म प्र

जेल क्या है कर दो चाहे सर तुम कलम - रशीद अलक़ादरी

जेल क्या है कर दो चाहे सर तुम कलम 
आई लव  मुहम्मद सल्लाहू अल्लेहे वसल्लम 

यकीन मानो जगा दिया उनकी उम्मत को 
ज़िंदा करेंगे देखना फिर एक एक सुन्नत को 
1500 साल पहले फिर जाएँगे 
नफ़रत नहीं मोहब्बत ही फैलाएँगे
कर ले ज़ालिम चाहे जितना जुल्मों सितम 
आई लव मुहम्मद सल्लाहु अल्लेहे वसल्लम

बेटी की पैदाइस पे मनाते  थे कभी सब मातम 
कहीं कोख चीर दी जाती थी कहीं ज़िंदा कर दी जाती थी बेटियां दफ़न 
नबी की आमद से ही हुआ था तब सारा जहाँ रौशन
नफ़रत फैलाने वाले थोड़ा तो करे शरम
आई लव मुहम्मद सल्लाहु अल्लेहे वसल्लम 

बांटा था जिसने हर घड़ी बस मोहब्बत का पैग़ाम 
उस नबी पे करोड़ों दरूद और सलाम
मौत पे भी नसीब हो उनका कलमा हो अल्लाह का बस इतना करम 
आई लव  मुहम्मद सल्लाहू अल्लेहे वसल्लम 

अमीरी ग़रीब का कोई भेद नहीं
कोई छोटा नहीं कोई बड़ा नहीं 
हज़रत बिलाल से दिलाई अज़ान 
बतलाया कोई गोरा नहीं कोई काला नहीं 
आज़ाद कराए कई ग़ुलाम
बेवा लाचार को भी दिलाए हक़ 
बतलाया सब है खुदा के बंदे ज़ुल्म किसी पे नहीं 
दिलाया सबको जहाँ में बराबरी का दर्जा
तो क्यों ना कहे हमारी ज़ुबान क्यों ना लिखे कलम 
आई लव  मुहम्मद सल्लाहू अल्लेहे वसल्लम

रशीद अलक़ादरी,झारखण्ड

कानून - डॉ ० अशोक

कानून - डॉ ० अशोक

भोर की किरणें
अँधेरे को चीरतीं
सत्य को लातीं

न्याय की ध्वनि
अंतरतम को जगाए
मन को शांति दे

सारा सच बोले
साप्ताहिक अखबार सा
जन का प्रतिबिंब

अदालत की चौखट
विश्वास और उम्मीद
सबको समान दे

हक़ की पुकार
कानून में बसती है
जन का सहारा

सारा सच लिखे
अखबार की पन्नों पर
सत्य की राह दिखाए

किताबों के पन्ने
संविधान की धड़कन
आस्था जगाएँ

नदी की लहर
सत्य और न्याय बहाए
जन विश्वास बढ़ाए

वृक्षों की छाँव
कानून का संरक्षण करे
कमज़ोर को थामे

कलम की ताक़त
सच की राह दिखाती
मन में उजाला

लोकतंत्र का मर्म
कानून ही समझाए
सबको बराबर करे

फूलों की खुशबू
न्याय के पथ पर बहती
सत्यम शिवं सुन्दरम्

डॉ ० अशोक,
पटना, बिहार।

फायदा - डॉ .चंद्रदत्त शर्मा चंद्रकवि रोहतक

फायदा - डॉ .चंद्रदत्त शर्मा चंद्रकवि रोहतक

सारा सच तब सामने तब आ गया 
अपनी बात में फायदा छिपा गया
किस बात में नुकसान किसमें फायदा 
करने से पहले विचार का ही है कायदा।

जीवन का नुकसान फायदा कुछ नहीं
संतुष्टि से फायदा ज्यादा कुछ नहीं
जो जिंदगी को जमा घटा समझते रहे
वे जिंदगी का व्यापार ही करते रहे।

जिंदगी का असली सुख आनंद है
सारा सच-जिंदगी कला है उमंग है
इक फकीर ने जीवन का सारा सच कहा 
ले मजा उसी का जो तेरे पास है रहा।

फायदा तुझको तभी जीवन में लगेगा
जब मन में खुद से प्यार का भाव जगेगा
तब तेरे लिए कण कण कृष्ण राधा होगा
मस्ती के इस आलम में फायदा ही फायदा होगा।

डॉ .चंद्रदत्त शर्मा चंद्रकवि रोहतक

अमीर - गरीब - अनन्तराम चौबे अनन्त

अमीर - गरीब - अनन्तराम चौबे अनन्त

अमीर गरीब जो भी हो
कर्मों का फल मिलता है ।
ईश्वर ने जो लिख दिया है
समय आने पर मिलता है ।

कर्मों का फल मिलता है
कब कैसे कहां मिलता है ।
कोई कभी समझ न पाया
पर कर्मों का फल मिलता है।

कर्म कौन से अच्छे हैं
और कर्म कौन बुरे होते हैं ।
सुख दुख तो आते जाते हैं
सारा सच जीवन साथी होते हैं ।

कोई अमीर है कोई गरीब है
मध्यम वर्ग के लोग भी होते हैं ।
अमीर गरीब या मध्यम वर्ग हो
बच्चे सभी के यहां पर होते हैं।

सारा सच कौन कहां पैदा होगा
क्या कर्मों के फल से होते हैं ।
अमीर के घर औलाद न हो तो
कर्मों का दोष उसको देते हैं।

धर्म कर्म नित पंडित करता है
उसको भी सुख दुख आते हैं।
एक कसाई रोज बकरा काटे
उसको भी सुख दुख आते हैं ।

कर्म कौन सा इसमें अच्छा है
और बुरा कौन सा इसमें है ।
पंडित या कसाई का कर्म
अच्छा बुरा कौन सा इसमें है ।

श्रीराम और सीता दोनों ही
वन वन ही पैदल भटके थे ।
माता पिता की आज्ञा मानी
क्या कर्मों के फल उनके थे ।

कौन कर्मो का फल अच्छा है
कौन बुरा कहना मुश्किल है ।
समय से पहले भाग्य से ज्यादा
किसको मिला कहना मुश्किल है ।

समय के साथ नहीं जो चलता
जीवन भर ही वो पछताता है।
किस्मत को दोष भी वो देता है
सारा सच कर्मों का फल पाता है ।

श्रीकृष्ण सुदामा की मित्रता 
की मिशाल जग जाहिर है  ।
जब तक समय नही आया 
सुदामा हमेशा गरीब रहे हैं ।

किस्मत ने जब साथ दिया 
पल भर में अमीर हो गये ।
दरिद्रता उनकी दूर हो गई 
महलों के मालिक बन गये ।

समय से पहले किस्मत से
ज्यादा कभी नही मिलता है ।
चाहे जितना जतन करो पर
भाग्य समय पर ही खुलता है ।

  अनन्तराम चौबे अनन्त
   जबलपुर म प्र