Saturday, 27 September 2025

योग - रेखा चौरसिया

योग - रेखा चौरसिया


प्राणायाम से नाड़ी शोधन,
रक्त प्रवाह का हो संशोधन,
मानव हित जग को संबोधन,
योगाभ्यास नहीं अवरोधन।

ऋषियों मुनियों की वाणी से,
योग को जोड़ें हर प्राणी से,
प्रतिदिन करते नए प्रयोग,
कुंजी अक्षय परम सुयोग।

नकारात्मक ऊर्जा है जिनमें,
चिंतन ध्यान स्फूर्ति तन में,
जटिल समस्या, घंटेंगे रोग,
स्वस्थ शरीर प्रदत्त सहयोग।

प्रतिदिन योग है जीवन दर्पण,
सौष्ठव बाल पुष्ट हो अर्पण।
धर्म आस्था करो समर्पण,
त्याग सुखों का योग को तर्पण।

भारत की परंपरा सनातन,
प्राण-योग-मन करता आराधन,
जटिल समस्या, गूढ़ हो चिंतन,
मनन योग से स्वस्थ्य हो जीवन।    

रेखा चौरसिया मिर्जापुर (प्रधानाचार्या)

स्वास्थ्य - अनन्तराम चौबे अनन्त

 


स्वास्थ्य 

मन प्रसन्न निरोगी काया हो
स्वास्थ्य जरूरी है आधार ।
सुख शांति और भाईचारे से
भरा पूरा हर घर परिवार  ।

स्वास्थ्य शरीर पावन धाम हैं 
तन मन भी सुखमय रहता है ।
जीवन में सुख-चैन जब रहता 
पावन धाम सा बन जाता है ।

तन मन स्वास्थ्य रहेगा जब 
सुखी जीवन भी रहेगा उसका ।
आपस में जो मिलकर रहेगा
निरोगी जीवन होगा उसका ।

ईश्वर ने सभी को बनाया है
शरीर में अंग बहुत होते है ।
हाथ पैर मुंह आंख नाक कान
और भी शरीर में अंग होते हैं ।

शरीर का कोई अंग दुखता है
दैनिक कार्य  मुश्किल होता है ।
पैरों के घुटनों में दर्ज होता है
चलना मुश्किल हो जाता है ।

सारा सच काम क्रोध मोह माया 
का लालच जब मन में रहता है । 
सच है मन अशांत हो जाता है
स्वास्थ्य पर असर भी पड़ता है ।

शारीरिक मेहनत जो नही करता
शरीर शिथिल भी हो जाता है ।
सारा सच शरीर दुर्बल रहता है
मेहनत का काम नही होता है ।

स्वास्थ्य जरूरी पावन धाम है 
शारीरिक मेहनत करना होगा ।
काम नही कुछ करना है तो
सुबह शाम घूमना जरूरी होगा।

घर के आसपास में हमेशा
स्वच्छता, सफाई जरूरी है ।
शुद्ध हवा स्वास्थ्य के लिए 
सभी के लिए भी जरूरी है ।

घर के आसपास पेड़ पौधे हों
जो स्वास्थ्य के लिए जरूरी हैं।
सारा सच शरीर स्वास्थ्य रखने 
में शुद्ध पर्यावरण भी जरूरी है।

स्वास्थ्य शरीर सुखी जीवन
सुख शांति का आधार है ।
स्वास्थ्य जरूरी रहेगा सभी का
तो सुखी होगा घर परिवार है ।

    अनन्तराम चौबे अनन्त
    जबलपुर म प्र

काश! वे लौट आएं - ऋचा गिरि

 


काश! वे लौट आएं

किसको पता था ?
ये गति एक दिन त्रासदी लाएगी।
उन्हें जाना था अपनों से दूर,
पर इतनी भी दूर नहीं कि वे
लौट ना सकें।
विकास इतना क्षमतावान नहीं हो पाया,
कि इस विभीषिका को रोक सके,
इसे पलट सके,
उन पलों को प्रत्यागत करे
जहाँ सेल्फी ली थी,
जहाँ खुशियाँ अपने शिखर पर चहचहा रही थी,
जहाँ से शुरुआत हुई थी।
काश!…
अभ्युदय की सीढ़ियाँ,
इतनी शीर्षस्थ हों
यदि मानव पंख लगाए,
कहीं दूर अदृश्य हो जाए।
तो उसे वापस ला सके
वहीं पर जहां से शुरुआत हुई थी…॥

ऋचा गिरि
दिल्ली

योग - डॉ पूजा भारद्वाज

 


योग, साधना सरल है
मन होता  है शांत 
भाग दौड़ की दुनिया में
जब होते हैं अशांत 

अपने लिए समय नहीं 
मन ना करे विश्राम
समय से नियमित योग करो
तो जीवन हो  खुशहाल 

योग क्रिया नित करो 
रोगों का  होगा हो नाश
जीवन पद्धति सुंदर बने
मन में हो विश्वास

बंद रखो आंखे हाथों से
लंबी सी एक सांस 
ॐ हो उच्चारित करो
ध्यान शून्य में केंद्रित करो आज

मन मस्तिष्क हो शुद्ध अगर
हो जाए यह शुरुआत 
पूरे दिन की ऊर्जा मिले
क्या दिन हो क्या रात!

प्राणायाम नासिका पथ और
भ्रामरी से हो कंठ मधुर
सूर्य नमस्कार  से पाचन 
योग है जीवन पुष्प भ्रमर।

योग दिवस की बहुत बहुत शुभकामनाएं
डॉ पूजा भारद्वाज 🌹

योगा - डॉ ०अशोक

 


योगा

यह एक पवित्र संस्कार है,
सुन्दर व परिष्कृत सांस्कृतिक त्योहार है।
स्वस्थ रहने वाले लोगों का,
संहिता और सुश्रुत आभार है।

उत्तम स्वास्थ्य और परिवार कल्याण की,
सबसे खूबसूरत उपहार है।
हरेक शख्स के लिए,
यही आत्मिक आभार है।

सारा सच की बेजोड़ धार में,
यह प्रस्फुटित होती है।
 हमें आगे बढ़ने में,
इसकी अहमियत सुकून देने वाली ताकत बनकर,
आत्मविश्वास बढा देती है।

योगा और उत्साह में,
सामंजस्य दिखनी चाहिए यहां।
सही मुकाम पर पहुंचने में,
इसकी जरूरत पड़ती है यहां।

सारा सच की बेजोड़ धार में,
सही मुकाम पर पहुंचने की कोशिश की जाती है।
योगा और उत्साह में,
सही वजह की ख़ोज की जाती है।

साहित्य और संस्कृति को,
योगा की जरूरत पड़ती है।
सहमी हुई दुनिया में खलबली मचा देने में,
इसकी अहमियत बढ़ती है।

सारा सच है तो ज़िन्दगी में,
आगे बढ़ने की ताकत बढ़ती है।
योगा और उत्साह से भरपूर होने पर,
सबमें उत्साह से भरपूर होने,
सही मुकाम पर पहुंचने में,
अक्सर  ताकत झलकती है।

डॉ ०अशोक,पटना,बिहार

शरीर को ऊर्जा देने वाले आसन योग - डॉ . बी.आर . नलवाया



शरीर को ऊर्जा देने वाले आसन योग —  

योग स्वस्थ् जीवन जीने की शैली है। लोग सोचते हैं कि प्राणायाम और आसन ही योग है, लेकिन ऐसा नहीं है। यह बहुत बड़ा आध्यात्मिक शास्त्र है। अगर आप नियमित योगाभ्यास करते हैं तो इससे आपका मेटाबऻलिज्म  सुधरता है और रोग प्रतिशोध क्षमता भी बढ़ती है। 
योग के 10 आसन जो आपके पूरे शरीर को संपूर्ण व्यक्तित्व को संवार देते हैं, इनमें उत्त्कटासन आसन– यह आसन जोड़ो, पेरों की मांसपेशियों में लचीलापन लाता है ,निचले अंगों की मांसपेशियों को मजबूत और टोन करता है। शरीर की संतुलन क्षमता बढ़ाता है। दूसरा कुंभकासन इसमें भुजाएं ,रीढ़ की हड्डी ,सीना और जांघों की मांसपेशियों को मजबूत बनाती हैं । अगर नियमित किया जाए तो 1 महीने में ही पेट में कमी साफ देखी जा सकती है। तीसरा विरासन पीठ ,कंधे और मांसपेशियों मजबूत होती हैं शवास गहरी होती हैं। शरीर भी जागरूकता ,संतुलन ,एकाग्रता सुधरता है। नाडियों को शांत करता है। पाच मयूरासन यह फेफड़ों, लीवर अग्रसेन, किडनी और पेट को मजबूत करता है पाचनतंत्र में गैस बनाना कम करता है । डायबिटीज में लाभदायक आसन है। पांचवा सेतु आसन जकड़ी पीठ को ठीक करता है ,गुर्दे और थायराइड की कार्य क्षमता को नियमित करता है । इससे शरीर में रक्त का प्रवाह ठीक होता है, हाई ब्लड प्रेशर में लाभदायक है। इनके अलावा और भी आसन है, जिनमें यषटीकासन का आसन होता है जो मन को शांत बनाए रखने का सबसे सरल उपाय बताता है। अर्धमत्स्यऐर्नदासन यह दिल की बीमारी पर नियंत्रण करता है। त्राटक आसन इच्छा  स्मरण शक्ति बढ़ाने में सहायक होता है । सर्वांगासन– मस्तिष्क को सकारात्मक ऊर्जा देने वाला आसन होता है। 

डॉ . बी.आर . नलवाया  पूर्व प्राचार्य, शासकीय  कन्या महाविद्यालय ,मंदसौर मप्र 

योग महान विभूति - तरुणा पुंडीर ' तरुनिल'

योग महान विभूति,


विश्व गुरु की संस्कृति,
योग महान विभूति,
बने निरोगी संतति,
मिले आत्मिक शांति।
योग के सहयोग से,
 पराजित हर व्याधि।
'जान है तो जहान है',
जागरूकता सर्वस्व हो,
जीवन उत्सव होगा तभी,
जब देह -प्राण स्वस्थ हों,
मानसिक विकार सभी,
जड़ से पस्त हों,
समाज भी स्वस्थ हो!
योग के सहयोग से,
विश्व गुरु के भाल का
रवि कभी न अस्त हो।

तरुणा पुंडीर ' तरुनिल'

योग - आरती झा आद्या

 

योग - आरती झा आद्या

पवन प्राण के संग में, साधे योग विचार।
भीतर उठती चेतना, बन जाए उपहार।।

अष्टांगिक पथ में बसा, ऋषियों का यह ध्यान।
योग तपस्या बन गया, जिसने जीता प्राण।।

नभ में जैसे नाद है, देही वैसे ध्यान।
योग उसी का नाम है, जिससे मिलता ज्ञान।।

चित्त वृत्तियाँ थम रही, थमने लगा प्रपंच।
योगी लिए समाधि जब, ध्यान न भटके रंच।।

रात्रि-प्रहर सम हो गया, अंतर का संकल्प।
योग तनय सम रूप ले, करे समाहित कल्प।।

घट-घट में झंकार है, नाद बिना अनुराग।
योग वही जो साध ले, भीतर का हर भाग।।

पलकों पर बैठा हुआ, मौन लिए संन्यास।
योग वही जो तोड़ दे, मोहित-माया-प्यास।।

जैसे निर्झर में बसे, सप्त स्वरूपा तान।
वैसे ही तन-मन जपे, योगमयी पहचान।।

✍️आरती झा आद्या
दिल्ली

आसान या आसन - राजकुमार युवी

 


आसान या आसन 

आसन, ध्यान,योग,प्रणायाम इत्यादि को समझने से पहले हमें योग क्या है यह समझना जरूरी है । फिर हम आसन को सही ढंग से गहराई से समझ सकते है । और अपने दैनिक जीवन मे धारण कर अपने आपको स्वस्थ और खुशहाल बना सकते है । अपनी इंद्रियों पर सही मायने मे  काबू पा सकते है । और अपने आपको दीर्धायु तक ले जा सकते है साथ एक स्वच्छ खूबसूरत समाज निर्माण मे एक अहम भूमिका निभाकर एक आदर्श नागरिक का कर्तव्य भली-भांति निभा सकते है ।
      योग :- योग संस्कृत के दो शब्द से बना हुआ है ,योग का अर्थ होता है जोड़ना यह एक व्यायाम ही नहीं बल्कि मैं जहां तक समझ पाया हुँ तो मैं कहूंगा की योग मतलब एक नई अद्भुत ऊर्जा का संचार । शुद्ध विचार .तन-मन सुखी रखने का बड़ा ही सुन्दर उपाचार । लेकिन अफसोस आज हम आप और युवा वर्ग पूर्वजों के प्राचीनतम उपचार को नजरांदाज करते है ।
         अगर अध्यात्मिक रूप से देखे तो  हम कह सकते हैं की अपने तन - मन से अपने आराध्य ईष्ट देव के साथ जुड़ना ही योग है ।ये अलग बात है यहाँ  साधक चुनते हैं की उन्हें कौन सा योग उन्हें चुनना  है ।जैसे ज्ञान योग ,कर्म योग ,ध्यान योग या फिर भक्ति योग ।
        वैसे भी योग संकल्प की साधना है या  फिर हम कह सकते है की योग एक महत्वपूर्ण अनुशासन है । योग एक स्वच्छ,स्वस्थ  जीवन जीने की कला है ,जिसे अपनाकर  हम पहले से सकारात्मक पक्ष चुन सकते हैं और इस जीवन के सच्चे अर्थो मे आंनद ले सकते है और योग से हम ब्रह्मचर्य नियम को भली-भांति पालन कर सकते  हैं  । अर्थात  योगश्चित्तवृत्ति निरोध:
 योग को मुख्य रूप से पांच प्रकार माना गया है । परन्तु इन प्रकारों के भी उपकार है । जैसे -कर्म योग ,भक्ति योग ,राज योग ,ज्ञान योग और हठ योग ।
हठ योग मे ही प्राणायाम ,बंध, मुंद्रा और आसन को रखा  गया है , 
आसन - योग मे जाने के लिए मानसिक और शारीरिक अवस्था है अर्थात शरीर की आराममय स्थिरता । अर्थात शरीर को बिल्कुल ढीला छोड़कर मनोवृति को बिल्कुल ही चिंता मुक्त शून्य अवस्था मे ले जाना ,जहाँ आपको बिल्कुल ही हल्का और चिंतामुक्त एक सुखद अनुभव हो ,वही आसन है ।धन्यवाद 
   🌹🙏
@rajkishorrayyuvi 
मधुबनी. बिहार

योगासन - कवि शरद अजमेरा वकील


 

*योगासन, मुद्रा और प्राणायाम: आध्यात्मिक प्रगति के लिए उनकी आवश्यकता*
योग केवल एक शारीरिक व्यायाम प्रणाली नहीं है, बल्कि यह शरीर, मन और आत्मा के संतुलन को साधने का एक प्राचीन विज्ञान है। आध्यात्मिक प्रगति के पथ पर योगासन, मुद्रा और प्राणायाम तीनों ही अत्यंत आवश्यक और पूरक अंग हैं, जो व्यक्ति को आंतरिक शांति, आत्मज्ञान और उच्च चेतना की ओर अग्रसर करते हैं।
योगासन: शरीर को साधना का माध्यम
योगासन केवल शारीरिक मुद्राएं नहीं हैं, बल्कि ये शरीर को आध्यात्मिक यात्रा के लिए तैयार करने का पहला कदम हैं। एक मजबूत, स्वस्थ और लचीला शरीर ही आध्यात्मिक साधना के लिए एक स्थिर आधार प्रदान कर सकता है। जब शरीर रोगमुक्त और तनावमुक्त होता है, तो मन भी शांत रहता है और एकाग्रता बढ़ती है। योगासन मांसपेशियों को मजबूत करते हैं, रक्त संचार में सुधार करते हैं, ग्रंथियों को उत्तेजित करते हैं और शरीर की ऊर्जा प्रणाली, जिसे चक्र कहते हैं, को संतुलित करते हैं। यह सब मिलकर व्यक्ति को ध्यान और प्राणायाम के लिए शारीरिक रूप से सक्षम बनाता है। एक स्थिर आसन में लंबे समय तक बैठ पाना ही गहन ध्यान के लिए आवश्यक है, और योगासन इसी स्थिरता को विकसित करने में मदद करते हैं। यह बाहरी शुद्धि के साथ-साथ आंतरिक शुद्धि का भी मार्ग प्रशस्त करते हैं, जिससे शरीर साधना के लिए उपयुक्त 'मंदिर' बन जाता है।
मुद्रा: ऊर्जा के प्रवाह को निर्देशित करना
मुद्राएँ विशिष्ट शारीरिक भंगिमाएँ या हाथ के इशारे हैं जो शरीर में ऊर्जा (प्राण) के प्रवाह को निर्देशित और नियंत्रित करती हैं। ये सूक्ष्म ऊर्जा केंद्रों और तंत्रिकाओं को सक्रिय करती हैं, जिससे मन शांत होता है और चेतना का विस्तार होता है। प्रत्येक मुद्रा का एक विशिष्ट उद्देश्य होता है, जो विभिन्न आध्यात्मिक लाभ प्रदान करता है। उदाहरण के लिए, ज्ञान मुद्रा एकाग्रता और ज्ञान को बढ़ाती है, जबकि ध्यान मुद्रा शांति और आंतरिक स्थिरता प्रदान करती है। मुद्राएँ मन और शरीर के बीच एक पुल का काम करती हैं, विचारों को शांत करती हैं और ध्यान की गहराई में प्रवेश करने में सहायक होती हैं। ये न केवल ऊर्जा को शरीर के भीतर रखती हैं बल्कि उसे ऊपर की ओर, आध्यात्मिक केंद्रों की ओर भी मोड़ती हैं, जिससे आत्म-जागृति और आंतरिक अनुभव तीव्र होते हैं।
प्राणायाम: जीवन ऊर्जा का नियंत्रण
प्राणायाम, 'प्राण' (जीवन ऊर्जा) और 'आयाम' (नियंत्रण या विस्तार) से मिलकर बना है, जिसका अर्थ है श्वास के माध्यम से जीवन शक्ति का नियंत्रण। आध्यात्मिक प्रगति के लिए प्राणायाम को अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। श्वास मन से सीधा जुड़ा हुआ है; जब श्वास धीमी और लयबद्ध होती है, तो मन भी शांत होता है। प्राणायाम तंत्रिका तंत्र को शुद्ध और शांत करता है, तनाव और चिंता को कम करता है, और मानसिक स्पष्टता बढ़ाता है। यह शरीर में ऊर्जा चैनलों (नाड़ियों) को साफ करता है, जिससे कुंडलिनी शक्ति के जागरण में मदद मिलती है। विभिन्न प्राणायाम जैसे अनुलोम-विलोम, कपालभाति और भ्रामरी श्वसन प्रणाली को मजबूत करते हैं और ऑक्सीजन के स्तर को बढ़ाते हैं, जिससे मस्तिष्क की कार्यप्रणाली में सुधार होता है और ध्यान अधिक गहरा होता है। प्राणायाम व्यक्ति को अपनी आंतरिक ऊर्जा पर नियंत्रण प्राप्त करने और उसे उच्च आध्यात्मिक लक्ष्यों की ओर मोड़ने में सक्षम बनाता है।
निष्कर्ष
संक्षेप में, योगासन, मुद्रा और प्राणायाम आध्यात्मिक प्रगति के लिए अनिवार्य उपकरण हैं। योगासन शरीर को तैयार करते हैं, मुद्राएँ ऊर्जा को निर्देशित करती हैं, और प्राणायाम जीवन शक्ति को नियंत्रित करता है। ये तीनों मिलकर एक समग्र प्रणाली बनाते हैं जो व्यक्ति को भौतिक से सूक्ष्म की ओर, बाहरी से आंतरिक की ओर ले जाती है। इनके नियमित अभ्यास से मन शांत होता है, इंद्रियों पर नियंत्रण आता है, और व्यक्ति आत्मज्ञान तथा अंतिम मुक्ति के मार्ग पर अग्रसर होता है। ये केवल अभ्यास नहीं, बल्कि एक जीवन शैली हैं जो आध्यात्मिक जागरण की नींव रखती हैं।
 
कवि शरद अजमेरा वकील

ध्यान - संजय वर्मा "दृष्टि"


 

ध्यान


पिता का चश्मा ,कलम/कुबड़ी
अब रखे उनकी किताबों के संग
लगता घर म्यूजियम,लायब्रेरी हो
जैसे यादों की।
माँ मेहमानों को

ध्यान देकर बताती

और उन्हें पढ़ने को देती

मेरे पिता की लिखी किताबें।
मै भी लिखना चाहता 
बनना चाहता 

पिता की तरह
मगर ,जिंदगी के 

भागदौड़ के सफर मे

फुर्सत कहा
मेरे ध्यान न देने से  
लगने लगी 

पिता की किताबों पर दीमक।


संजय वर्मा "दृष्टि"

मनावर जिला धार मप्र

तोड़ फोड़ - महाकवि अनन्तराम चौबे अनन्त

 


तोड़ फोड़

संविधान के अधिकारों का
गलत इस्तेमाल जो करते हैं ।
अराजक तत्वों से मिलकर 
देश को वो बदनाम करते है ।

आन्दोलन हड़ताल करके
तोड़ फोड़ नुकसान करते हैं ।
सरकारी और आमजनता की 
सम्पत्ति की तोड़फोड़ करते हैं

धरना प्रदर्शन आन्दोलन रैली 
हड़ताल करके गलत करते है।
मणिपुर जैसे कई उदाहरण है
जाति धर्म को बदनाम करते हैं ।

सारा सच आन्दोलन करके
बसों ट्रकों में आग लगाते हैं ।
सम्पत्ति को तोड़फोड़ कर
राजनीति अपनी करते हैं ।

अपने स्वार्थ को सिद्ध करने में
आम जनता को परेशान करते हैं।
कुछ स्वार्थी लोग अपने स्वार्थ से
बूढ़े बच्चे महिलाओं को धोखा देते हैं।

मजबूरी का फायदा उठाकर
गंदी राजनीति का खेल करते हैं ।
जाति धर्म  को बीच में लाकर
कानून से भी खिलवाड़ करते हैं ।

आवागमन बंद कर देते हैं
शासन को बदनाम करते हैं ।
आन्दोलन का नाम  रहता है
तोड़फोड़ कर उल्लू सीधा करते हैं ।

आन्दोलन धरना प्रर्दशन रैली
हड़ताल से तोड़फोड़ करते हैं ।
बसों ट्रकों में आग लगाकर
सम्पत्ति का नुक़सान करते हैं ।

संविधान से मिले अधिकारों का
आन्दोलन करके प्रदर्शन करते है ।
सारा सच है आन्दोलन कर कानून,
की मजबूरी का फायदा उठाते हैं ।

कानून व्यवस्था न्याय को ठेंगा,
ये आन्दोलन कारी दिखाते हैं ।
बड़ी अदालतें संज्ञान न लेकर
अपनी आंख बंद किए रहते हैं ।

सारा सच यही है धरना प्रदर्शन
आन्दोलन रैली हड़ताल झूठे हैं ।
कानूनी कड़े कदम उठाए तब फिर
जाति धर्म पर पक्षपात बताते हैं ।

विरोधी दल के कुछ नेताओं का
आन्दोलन रैली में साथ होता है।
सत्ता पक्ष को बदनाम करने से 
उनका मकसद हल होता है  ।

 महाकवि अनन्तराम चौबे अनन्त
    जबलपुर म प्र

जल - संजय वर्मा "दृष्टि"

            

जल

वक्त भी ढूंढने लगा है 
सहारों को
जो जल की चाह
अपनो की राह में
जिंदगी के थपेड़ों में 
हो चुके गुम।

ऐनक ,लकड़ी के सहारे 
डगमगाते कदम 
बताने लगे है अब 
उम्र को दिशा।

दूरियों से पनपते रिश्ते 
भ्रमित हो जाने लगे 
अपनों में।

वे रिश्ते ही अब 
पाना चाहते सुखद छांव 
आसरों के वृक्ष तले।

सच तो है 
क्योंकि वे ही दे सकेंगे 
आशीर्वाद के मीठे फल 
जिन्होंने उन्हें सींचा होगा 
सेवा के जल से।

संजय वर्मा "दृष्टि "
१ २ ५ ,शहीद भगतसिंग मार्ग 
मनावर जिला -धार (म. प्र .

नदी - डॉ गुलाब चंद पटेल

रास्ता नदी का पर्वत ने रोका
हमे भी दे दो एक मौका
सालो से खड़े हैं हम,
हमे है आप से मिलने का ग़म 
ख़वाब नहीं है दिया 
मेरा समुद्र है पिया 
जब आती है समुद्र में ओट 
तब मेरे दिल में लगती है चोट 
जब आती है समुद्र में भरती 
तब आंखे मेरी आँसू भरती 
ये पर्वत छोड़ दो रास्ता मेरा 
तुमसे नहीं है कोई वास्ता मेरा 
जब समुद्र में आती है लहर 
तब जाग जाती हू मे प्रहर 
पर्वत तुम रोको ना मेरी गति 
आप की होगी बड़ी दुर्गति. 

डॉ गुलाब चंद पटेल